अब बादल छटेंगे
बाधाएं तो आती रहती है
मंजिल पर पहुंचना कैसे छोड़ दें
माना मिले है हमें दर्द बहुत
लेकिन जीने की आस कैसे छोड़ दें।।
सूखे पतझड़ के बाद ही
आता है बसंत हरियाली लेकर
बदल जाएगा ये मौसम भी
कोशिश करें हम संकल्प लेकर।।
भाग जायेंगे सारे दर्द भी अगर
दर्द को भी दर्द देने की हिम्मत हो
कुछ भी मुश्किल नहीं अगर
सच को सच कहने की हिम्मत हो।।
जो चेहरे दिख रहे है उदास आज
कल उन पर भी मुस्कान होगी
अनजान भटक रहे जिन गलियों में आज
वहां कल तुम्हारी भी पहचान होगी।।
करते रहो कोशिश निरंतर
आज नहीं तो कल बादल छंटेंगे
एक दिन इन्हीं गलियों में
तुम्हारी सफलता के लड्डू बंटेंगे।।
मानों है इतना तय कि कभी
किसी की मेहनत बेकार नहीं जाती
बीत जाती है जब काली रात
फिर सुबह नई रोशनी लेकर है आती।।
सपने भी तभी होते हैं पूरे
अगर हम जी जान से कोशिश करें
जा सकता है वही तारों के करीब
जो नभ में उड़ने की कोशिश करे।।