अब तो सूरज चाँद भी इश्क करने लगे है –आर के रस्तोगी
कलयुग में सब बदलने लगे है
सूरज,चाँद भी बदलने लगे है
ये भी अब इश्क करने लगे है
अपनी आदत बदलने लगे है
इंसान की तरह बदलने लगे है
एक दूजे को धोखा देने लगे है
“सूरज” की जरा असलियत तो देखो,
सुबह सैर को निकलता है “किरन” के साथ
दोपहर को रहता है “रौशनी” के साथ
शाम को जाता है “संध्या” के साथ
सो जाता है पत्नि “छाया” के साथ
चाय पीता वह “किरन” के साथ
पर वह दुखी है बेटी “यमुना” के कारण
चूकी मिल गयी है वह गंदे नालो के साथ
भेजेगा अपने बेटे “यम” को किसी के साथ
देखगे कि कितने लोग देगे उसका साथ
चंदा को जरा चमकते हुये देखो,
निकलता है “चांदनी” के साथ
ले जाता है तारो की बारात
“चांदनी” को देता है सौगात
फिर हनीमून मनाता है उसके साथ
थक कर सो जाता है “तारा” के साथ
“वर्षा” को देखो जब वह आती है
“बिजली” उसे कडक कर डराती है
“रिम झिम” करके वह सताती है
पर प्यासे की प्यास वह बुझाती है
“बादल”भी उस को घुडकाता है
डर के मारे छिप जाती है “मेघ” के साथ
“धरा ” “सूर्य” के चक्कर काटने लगी है
उसको दिन और रात पटाने लगी है
अब तो उस पर डोरे डालने लगी है
“सूरज” से सौर उर्जा लेने लगी है
रात को “प्रकाश” वह देने लगी है
हर मौसम में उससे मजे लेने लगी है
सर्दी में गर्मी,गर्मी में सर्दी लेने लगी है
“चाँद” “धरा” के चक्कर काटने लगा है
उससे अब मोहब्बत करने लगा है
जब वह फस जाता है सूरज पृथ्वी के बीच
“राहू”उसको निगलने लगा है
मुसीबत के मारे तडफने लगा है
सोचने लगा वह सोयेगा किसके साथ
नोट:” ” किसी न किसी के नाम है |
आर के रस्तोगी