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17 Jan 2023 · 1 min read

अब तक मैं

अब तक मैं,
पूज रहा था जिसको,
मानकर प्रेम प्रतिमा।
और नहीं लेता था विराम,
मैं एक पल के लिए भी,
प्रशंसा जिसकी करते समय,
और रहता था मेरा सिर,
गर्व से ऊँचा कल तक,
पवित्रता जिसकी देखकर,
शायद यह गलतफहमी थी मेरी।

अब तक मैं,
देखता था हरपल मैं,
जिसके रातों में सपनें,
अपनी खुशियों के लिए,
और सींच रहा था मैं,
मानकर जिसको अपनी बगिया,
करता था हर रोज दुहा मैं,
जिसकी खुशहाली के लिए,
शायद यह मेरी भूल थी।

अब तक मैं,
कर रहा था जिससे प्रार्थना,
उसका प्रेम पाने के लिए,
और बहाता था ऑंसू अपने,
जिसकी आँखों में आँसू देखकर,
जिसको देना चाहता था मैं,
अपनी सारी दौलत- खुशियाँ,
शायद यह उसकी प्यास थी।

शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

Language: Hindi
155 Views
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