sp ,,95अब कोई आवेश नहीं है / यह तो संभव नहीं
sp, 95 अब कोई आवेश नहीं है/ यह तो संभव नहीं
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अब कोई आवेश नहीं है कोई नया परिवेश नहीं है
आए हैं तो जाना होगा किंचित मन में क्लेश नहीं है
संभव नहीं भुलाना कल को पीड़ा का संदेश नहीं है
चलते चलते शाम हो गई मगर समय से द्वेष नहीं है
आने को आतुर भी तिमिर है नया कोई संदेश नहीं है
तय है उजाला भी आएगा सिंह सूर्य है मेष नहीं है
हर दिन धार हो रही पैनी और बदलती वेश नहीं है
सच की कलम सतत चलती है वह भी मगर अ शेष नहीं है
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यह तो संभव नहीं हमेशा रात रहे
दिन का आना तय है सच ये बात रहे
हाथी ऊंट वजीर कभी प्यादे बन कर
जीवन की हर चाल में खाते मात रहे
,
शह देकर खुश रहे न समझे जीवन क्या
बात-बात पे बात न हो बे बात रहे
,
शाम हो गई और अंधेरा लगे निकट
अब क्या होगा हम सब मलते हाथ रहे
,
अब पछताने से न मिलेगा कुछ हमको
समय का खेला डाल डाल और पात रहे
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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