अपेक्षा
अपेक्षा
कर लेते हैं हम
अत्यधिक अपेक्षा
दूसरों से
नहीं सोचते
कितने खरे
उतरते हैं हम
दूसरों की अपेक्षा पर
जब नहीं होती
अपेक्षा पूरी
तो होते हैं दुखी
खो देते हैं आपा
अपेक्षा बदल जाती है
उपेक्षा में
उपेक्षा बदल जाती है
तकरार में
तकरार विवाद में
विवाद फसाद में
बदल जाते हैं
और फसाद तो
अजर-अमर हैं
-विनोद सिल्ला©