अपाहिज
घबराहट एक मनोवैज्ञानिक लक्षण है,
आजकल के बच्चे वाचाल तो बहुत है
मनोदैहिक मजबूत कतई नहीं,
वे जल्दी थक जाते है, हार मान लेते है.
आगे हार के कारणों के अध्ययन की बजाय
अगली हार पक्की कर लेते है,
इसकी नींव घर में ही स्कूल के दिनों में माता-पिता और अध्यापक के बीच समंवय न होने के कारण पड़ जाती है,
बच्चे पर निगरानी रखने की बजाय, अनावश्यक मदद आधार बन जाते है.
हमें मालूम भी नहीं रहता और बच्चे असहाय बन जाते हैं, वे हमारी मदद के बिन अगला कदम नहीं उठाते.
और घबराहट और अपाहिज की श्रेणी तैयार हो जाती है,
कुछ बच्चे भगौड़े तथा कुछ लडने को तत्पर.
समझ से कोई कोई उभर पाते है.
उनके दुश्मन जातिवादी, वर्ण-व्यवस्था बाधक बनती है.
सामुहिक, सामुदायिक स्थलों पर डर बने रहता है, कोई जानकारी विरोध न कर दें.
और वह कभी हिम्मत जुटाते भी है.
घटना घट जाती है.
तिरस्कृत होना पडता है.
इसलिये अपने महापुरुषों के जीवन चरित्र पढते रहना चाहिए,
उन्होंने ऐसी स्थिति से पार पाने के लिये क्या किया,
और हमने क्या करना है,