अपने होने का अहसास
मैं ढूँढ रहा था जिसे
अंतरिक्ष के उस पार
या सांसों से भी करीब
अंतर्मन के आस पास
क्यों विचलित करती है मुझे
शांति की यूँ बढती प्यास
प्रतिबिंब सा है सच का चेहरा
लक्ष्य की झूठी सी एक आस
क्यों लुभा नहीं पाती हमें
हर घूँट की मधुर मिठास
क्यों तृप्त नहीं करती हमें
सिर्फ अपने होने का अहसास