***”अपने आपको पहचानो …..! ! !
श्री परमात्मने नमः
***”अपने आपको पहचानो “***
एक महात्मा जी भिक्षा मांगने निकले उनका भिक्षा का पात्र (कटोरा ) बहुत ही गंदा टुटा फूटा सा था लेकिन महात्मा जी बड़े ज्ञानी पुरुष थे एक दिन राज्य की रानी जी को पता चला कि महात्मा जी संत ज्ञानी पुरुष होते हुए भी भिक्षा माँगकर अपना भरण पोषण करते हैं जब रानी के घर वह संत महात्मा जी भिक्षा मांगने आये तो उन्होंने कहा कि आप अपना भिक्षा मांगने का पात्र मुझे दे दीजिए बदले में मैं आपको दूसरा नया पात्र देती हूँ महात्मा जी मान गये रानी ने वह टुटा फूटा पात्र बदलकर नया सोने का पात्र दे दिया था रानी को वह महात्मा जी का पात्र मिलने पर बेहद खुशी हो रही थी क्योंकि वह ज्ञानी महात्मा जी का पात्र था उन्हें ऐसा लग रहा था मानो बेशकीमती तोहफा मिल गया हो ।
महात्मा जी सोने का पात्र लेकर चले रास्ते में चलते हुए एक चोर पीछे पड़ गया सोने का पात्र चमकता हुआ देखकर चोर को लालच आ गया आज तो ये सोने का पात्र चुराना ही है और महात्मा जी का पीछा करते हुए चलने लगा था महात्मा जी को भी आभास हो गया था कि ये एक चोर है मेरे इस सोने का पात्र को देखकर पीछा कर रहा है।
महात्मा जी अपनी कुटिया में जाकर उसी पात्र में खाना खाया फिर उन्हें कुछ आहट सुनाई दी तो भाँप गये जरूर वह चोर पीछा करते हुए यहां तक आ गया है तो उन्होंने उस पात्र को खाना खाकर धोकर बाहर फेंक दिया इस बात पर चोर को समझ नही आया कि संत महात्मा जी ने इतनी महंगी कीमती सोने का पात्र को बाहर क्यों फेंक दिया…..? ? ?
चोर ने सोचा कि इतनी महंगी मूल्यवान चीजों को फेंकने के बाद भी वह महात्मा जी आराम से सो रहा है या तो वह नकली वस्तु होगी मूल्यवान सोने का पात्र नही होगा …? ?इसका पता लगाना चाहिए …! ! चोर ने उस सोने का पात्र उठाया नही बल्कि कुटिया में अंदर आने की महात्मा जी से अनुमति माँग कर कहने लगा ….क्या मै आपके कुटिया के अंदर आ सकता हूँ ….इस पर महात्मा जी कहने लगे कि आ जाईये …! ! !
महात्मा जी तो सब जान रहे थे फिर भी उससे पूछा – आप कौन हैं … ? ? इस पर चोर ने अपनी पूरी कहानी बतलाई कहा – मैं जाना माना प्रसिद्ध चोर हूँ लोग मुझे जानते हैं बड़ी बड़ी चोरी करता हूँ लेकिन आपको देखकर मुझे कुछ अजीब सी प्रतिक्रिया हो रही है आपसे मिलकर कुछ ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे मैं गलती कर रहा हूँ और आप मुझे कुछ एहसास दिलाने वाले हैं आपको देखकर मै आपके जैसा बनना चाहता हूँ लेकिन चोरी करना नही छोड़ सकता हूँ इसके अलावा जीवन निर्वाह का कोई साधन उपलब्ध नहीं है कृपया मुझे मार्गदर्शन कीजिये ….? ?
चोरी का काम भी करता रहूँ और अध्यात्म्य से भी जुड़ा रहूँ ऐसा उपाय बतलाईये….
महात्मा जी ने कहा – ठीक है तो सुनो …”जो भी काम करो चेतना में जागृत अवस्था में करना बस इतना ही चेतना जागृत अवस्था में ही कार्य करते रहना …..! ! !
चोर करने बड़े बड़े महलों में दुकानों में घरों में चोरी करने जाता था लेकिन वहाँ हीरे जवाहरात अमूल्य चीजो को देखकर महात्मा जी की कही गई बातें याद आ जाती थी ….”जो भी काम करो चेतन मन से जागृत अवस्था में रहकर कार्य करना ” और वह चोर बिना चोरी किये वहाँ से खाली हाथ वापस लौट आता था।
ऐसा बहुत दिनों तक चलते रहा फ़िर थक हार कर महात्मा जी के पास पहुँच गया उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्या कर दिया है कि जब भी चोरी करने जाता हूँ वैसे ही आपकी कही गई बातें दिमाग में आने के बाद चोरी करने का विचार बदल जाता है और बिना चोरी किये ही खाली हाथ लौट आता हूँ ऐसा क्या हो गया है ….? ? ?
महात्मा जी ने कहा -तुम्हीं ने तो मुझसे कहा था कि आपके जैसे बनना है तो अब तुम सुधर चुके हो अब मेरे पास आने की जरूरत नही है और जीवन में तुम्हें जो भी कार्य शुरू करना है अपने बलबूते खुद ही जियो अब अपने आप को स्वयं को पहचानो …….! ! !
***राधे राधे जय श्री कृष्णा ***
*** शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश #*