अपने अंदर डूबकर
अपने अंदर डूबकर , अन्तः जगत निहार ।
क्या अच्छा क्या बुरा है मन में करो विचार ।।
पंछी है आकाश में भले उड़े दिन रैन ।
मानव जो उड़ता फिरे उसे कहाँ है चैन ।।
बीते दिन में घूमकर बीता भी कुछ देख ।
मिल जाएंगे वहां से कछुक पुराने लेख ।।
एक हाथ से कभी भी बजे न ताली यार ।
बजती दोनों हाथ से फिर क्या सोच विचार ।।
समय खिसकता जा रहा ज्यों मुट्ठी से रेत ।
बीत गई है रात अब फिर भी पड़ा अचेत ।।
देकर दुःख उसको सदा होता था नित मुग्ध ।
एक करारी चोट पर कहे किसे संदिग्ध ।।
घड़ी दो घड़ी का रहे यह जीवन का खेल ।
सबका हित करते रहो बना सभी से मेल ।।
ऐंसे नर को त्यागिये जो है झूँठ लबार ।
निज स्वारथ को साधकर कर दे तुम्हें किनार ।।