अपना सौदा करते सनम देखते हैं
चुराकर दिल मेरा वो ऐसे देखते हैं
हुए दिल पे सारे सितम देखते हैं।
अधूरी मुहब्बत का ऐसा फसाना
वो शुर्ख गुलाबों में हम देखते हैं।
धड़कन में बस कर रूह खोजते हैं
हैं कितनी मेरी आँख नम देखते हैं।
मुहब्बत में होता नही कोई सौदा
अपना सौदा करते सनम देखते हैं।
तुफानो से कस्ती निकलती रही हैं
खुदाया का ऐसा करम देखते हैं।
अपना बना कर फिर गैर करने वाले
बेगैरत इस दुनिया में हम देखते हैं।
एक महफ़िल सजा दो,जाम पिला दो
है तुझमें भरा कितना सम देखते हैं।
लिखते लिखते थर्रा जाती मेरी कलम
लिखी उसकी कहानी को हम देखते हैं।
ये शान ये शौकत ये सारा जमाना
फ़क्त वक्त के आगे ख़त्म देखते हैं।
®आकिब जावेद