अपना साथ
अपना साथ
तेरी तस्वीर से बात करते करते हमने रात बिताई है
आज ना जाने क्यों मुझे तेरी बहुत याद आई है
यूं तो हरदम ही तुम मेरे हृदय में रहा करती हो
आज ना जाने क्यूं तेरी कमी इन आंखों में नमी लाई है
कल सुबह जब होंगी फिर बातें दो दो तुझसे
हाल ए दिल मेरा ही जब पूछोगी तुम मुझसे
कुछ न कह पाएंगी ये खामोश निगाहें मेरी
दिल का हाल फिर कैसे बयां हो सकेगा मुझसे।
साथ प्रियवर एक दो नहीं सात जन्मों का है अपना
रिश्ता प्रेम पाश में कुछ इस तरह से बंधा है अपना
रात और दिन अब तो मुझको सिर्फ रहता है खयाल तेरा
जीवन भर अब तो रहना है हाथों में हाथ अपना।
संजय श्रीवास्तव