अपना घर भी अब
अपना घर भी अब
पराया सा लगता है
भटकता रहता है मन
इस घर में रहने वाला हर शख्स
महज एक साया सा लगता है
महफिल सी जुड़ी रहती है
दिन रात यहां
मुझे होती है पर महसूस घुटन
हर पल ही यहां
घर से कहीं बाहर भी
कोई घर नहीं मिलता
कहने के लिए
दिल बहलाने को खुद का
कोई अपना सा नहीं मिलता
खिलौनों की दुकान है पर
खरीदने को मेरे पास पैसे नहीं
खिलौने में चाबी भरो तो भी
चलता नहीं
लगता है हो गया है कहीं
गहरे खामोश
मेरी ही तरह।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001