अपना अपना आवेश….
स्वच्छ नहीं विचारों के वेश
बदल रहा परिवेश
समावेश दिखता नहीं —
बस अपना अपना आवेश .!!
स्वार्थ यहां परमार्थ कहां
भावार्थ नहीं यथार्थ कहां
निजता चरम लुप्त करम
सुयोगता नहीं है शेष —
बस अपना अपना आवेश…!!
मन प्रदूषित तन सुगंधित
आडंबरो से रचा स्वयं को
सिमटता जा रहा जीवन
हरपल हरक्षण क्लेश —
बस अपना अपना आवेश…!!
सदहृदय का ना संचार दिखे
मानवीय ना व्यवहार दिखे
स्वयं-शब्द की लालसा
क्यों कर मिले विशेष —-
बस अपना अपना आवेश..!!
नादान नहीं पर रंगे किसरंग में ?
दिशा कौन सी चले किस संग में ?
ज्ञात है — सब रिक्त–सब शून्य है
सच की धरा पर रहते है —
केवल स्मृतियों के अवशेष —
क्यूं अपना अपना आवेश….??
—– रंजित तिवारी
पटेल चौक, कटिहार
बिहार , पिन –854105
संपर्क — 6200126456