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6 Oct 2022 · 1 min read

*प्रिय तुमसे ही पाया है (गीत)*

प्रिय तुमसे ही पाया है (गीत)
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
मधुर समर्पण अपनापन, प्रिय तुमसे ही पाया है
(1)
अनजाने हम, मिले नहीं थे बचपन सारा बीता
लिखी भाग्य में थीं तुम, जैसे लिखीं राम के सीता
प्रेम हमारा घर-आँगन, कोने-कोने छाया है

(2)
मिली हमें वह छाँव-गृहस्थी, अनुपम जन ने पाई
छोटी सुगढ़ सलोनी दुनिया, हमने एक बनाई
काया के उस पार मौन, अमरत्व लिखा आया है

(3)
करवा चौथ न जाने कितनी आई और गई हैं
परिभाषाएँ रिश्तों की दिखती हर बार नई हैं
धवल चाँदनी ने मधुरस, हर बार नया गाया है
मधुर समर्पण अपनापन, प्रिय तुमसे ही पाया है
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र..)
मोबाइल 9997615451

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