अनुभूतिया
जीवन की राहे सूनो हो चली
मन उदासी के सागर में डूबता रहा
राहे जैसे खत्म होने को है
सांझ की लालिमा
रात्रि की कालिमा
सभी घेरे हुये है मुझको
फिर भी जीता हूँ मै
बीते हुये कल की
उन सुर्ख यादो तले
उस कल की संगीत लहरी पर
मन की उन अतरंग गहराइयो में
जहां कुछ क्षणों के लिये
खुशिया मिली थी
ओर फिर खो गई
अनंत के आकाश में
जहाँ काले बिंदु है
उस राख के धुएं से निर्मित
स्वछन्द विचरण करते हुऐ
डॉ सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल