Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 May 2023 · 7 min read

अनहोनी

ये अनोखी कहानी है, अनुपमा और आलोक की। जिसकी शुरूआत होती है शिमला के एक नामी गिरामी कॉलेज से, जहाँ लगभग साथ-साथ ही दोनों की नियुक्ति हुई थी।

”हैलो, मैं डॉ. आलोक गोविल, रसायन विज्ञान में ज्वाइन करने आया हूँ, आप डॉ. अनुपमा दत्ता हैं ना? मैंने आपका नाम लिस्ट में देखा था।”

“जी, मैं भौतिक शास्त्र में हूँ,” आलोक की बात सुनकर अनुपमा ने तुरंत मुस्कुराकर जवाब दिया।

ऑफ़िस में इस पहली मुलाक़ात बाद से ही दोनों अच्छे मित्र बन गए। कॉलेज की अच्छी बुरी सारी बातें एक दूसरे से साझा करना, छोटी-बड़ी सभी बातों पर एक दूसरे की सलाह लेना, उनका रोज़ का काम हो गया था। नई नौकरी, नई जगह, नई उम्र, नया जोश और नए लोग, सामंजस्य बैठाने में दोनों व्यस्त हो चले थे।

अनुपमा छोटी छोटी बातों में आनंदित रहने वाली, ख़ुशमिज़ाज और मिलनसार लड़की थी। अपने मधुर व्यवहार और अपनी प्रतिभा से बहुत कम समय में ही उसने छात्र छात्राओं और सहकर्मियों के बीच अपनी अच्छी जगह बना ली। उसे कॉलेज बहुत भाने लगा था। वहीं तीक्ष्ण बुद्धि, थोड़ा उग्र स्वभाव वाला और अत्यधिक महत्वाकांक्षी आलोक जीवन में बहुत कुछ कर गुज़रना चाहता था।

“अनु, मुझे हर वक़्त एक बेचैनी-सी रहती है, मुझे अपने विषय को बहुत आगे लेकर जाना है, पूरी दुनिया में नाम कमाना है, मेरा एक एक पल क़ीमती है।”

“भई मैं तो जैसी नौकरी चाहती थी, वो मुझे मिल चुकी है, अब मैं सुकून और आराम से भरी ख़ुशगवार ज़िन्दगी जीना चाहती हूँ,” आलोक की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर अनुपमा हँसकर कहती।

एक तो शिमला का मनमोहक मौसम, दूजे आंतरिक संतुष्टि की आभा, ख़ूबसूरत अनुपमा का सौंदर्य और निखर उठा था, जिसपर आलोक को छोड़कर सबकी नज़रें पड़ने लगी थीं। आलोक अधिकतर समय कई-कई शोध पत्रों को पढ़ता हुआ, एक अजीब सी उधेड़-बुन में रहने लगा था।

“अनु, देखो मेरे दो शोध पत्र प्रकाशित हो गए, वो भी इतने अच्छे इंटरनेशनल जर्नल में,” आलोक के ऐसा कहते ही अनुपमा बेहद ख़ुशी से शोधपत्रों को देखने लगी थी, “अरे! तुमने इनमें मेरा भी नाम क्यों डाल दिया, आलोक? मैंने तो कोई मेहनत ही नहीं की है इनमें!” अत्यधिक आश्चर्य से अनुपमा ने कहा।

”तो क्या हुआ, इसमें फिजिक्स के सिद्धांतों की भी सहायता ली गई है, और फिजिक्स केमेस्ट्री तो दोस्त होते हैं न! तुम्हें सी आर लिखने में काम आएँगे,” आलोक ने जवाब दिया।

इस बात से अनुपमा कई दिन उद्वेलित रही। “इतने महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने इतनी मेहनत से शोधपत्र लिखे और उसमें अपने साथ मेरा भी नाम डाल दिया, जबकि मेरा रत्तीभर भी योगदान नहीं है। महज़ दोस्ती का ही तो रिश्ता है . . . फिर क्यों?” अनुपमा सोचती रहती।

“अनु, मैंने एक घर लिया है, आज लौटते समय मेरे साथ चलना, मेरा घर देखना,” एक दिन आलोक ने अनुरोध किया था।

आलोक धनाढ्य परिवार से था, धन-सम्पत्ति की कोई कमी नहीं थी। तीन बेडरूम का आलोक का घर अनुपमा को काफ़ी व्यवस्थित और सुंदर लगा। घूम-घूमकर पूरा घर देखते-देखते अनुपमा ठिठककर कह उठी, “अरे! ये क्या! एक बेडरूम को तुमने प्रयोगशाला में बदल दिया, आलोक!”

“ये मेरी अपनी प्रयोगशाला है अनु, इसमें मैं एक दिन किसी नायाब चीज़ का आविष्कार करूँगा, दुनियाभर में मेरा नाम होगा, सब देखते रह जाएँगे।”

आलोक के ऐसा कहते ही अनु ने चुटकी ली, “भई फिर हमारे महान साइंटिस्ट महोदय अपने पुराने दोस्तों को भूल तो नहीं जाएँगे?” लेकिन पता नहीं क्यों, आलोक की आँखों में जुनून देखकर अनुपमा किसी अनजाने डर से सिहर उठी थी।

अप्रैल-मई का समय था, कॉलेज में परीक्षाओं की व्यस्तताएँ थी। अनुपमा की आलोक से कई दिनों से बातचीत नहीं हो पाई थी। एक दिन अनुपमा ने सुना, आलोक पिछले दो दिन से बिना किसी सूचना के कॉलेज नहीं आया था। उसने तुरंत ही आलोक को फोन लगाया, लेकिन आलोक ने फोन नहीं उठाया। उसके बाद अनुपमा ने अगले तीन दिन तक, उसे जाने कितनी ही बार फोन किया, लेकिन आलोक ने एक बार भी फोन नहीं उठाया, घंटी बराबर बजती रही थी। बहुत चिंतित होकर अनुपमा ने आलोक के घर जाने का निश्चय किया। शाम को अपनी दोस्त रुचि के साथ आलोक के घर पहुँचकर डोरबेल बजाई, दरवाज़े पर कोई नहीं आया, लेकिन दरवाज़ा हल्का खुला हुआ ही था। हिम्मत करके दोनों सखियाँ अंदर दाख़िल हो गईं। पूरा घर छान मारा, कहीं कोई नहीं था। लेकिन पता नहीं क्यों दोनों ने ही ये महसूस किया मानो घर में कोई है। रसोईघर से भी ताज़ा बनी हुई कॉफ़ी की ख़ुश्बू आ रही थी, घर ठीक-ठाक, व्यवस्थित-सा ही था। लेकिन आलोक की प्रयोगशाला में सारा सामान बहुत बेतरतीब सा था, मानो किसी ने जल्दबाज़ी में सब कुछ फैला दिया हो। ढेर सारी परखनलियाँ, बहुत सारे बीकर और केमिकल्स बिखरे पड़े थे। अचानक अनुपमा को आलोक का धीमा सा कातर स्वर सुनाई दिया, “अनु . . . ” जैसे आलोक ने बहुत पास आकर उसके कान में उसका नाम पुकारा हो। चौंककर, बेचैनी से अनुपमा ने चारों तरफ़ देखा। किसी को भी न पाकर घबराहट में पसीने से तर, किसी तरह रुचि का हाथ थामकर, बदहवास सी आलोक के घर के बाहर आ गई थी। इस घटना के बाद अनुपमा कई-कई रात नहीं सो पाई।

“मैंने जो भी महसूस किया वो सब क्या था” अनुपमा मन ही मन सोचती रहती, किसी से कुछ नहीं कहती। आलोक की कोई ख़बर नहीं मिल पाई। कुछ समय बाद आलोक के घर के भुतहा होने की अफ़वाहें भी सुनाई देने लगी थी। लोगों ने उसके घर के दरवाज़े को अपने आप खुलते बंद होते देखा था, घर की लाइट्स को जलते बुझते देखा था, अंदर किसी के चहलक़दमी की आवाज़ भी सुनी थी। जितने मुँह उतनी बातें।

“आख़िर कहाँ ग़ायब हो गया, एक जीता जागता इंसान,” अक़्सर अनुपमा सोचती। उसके जीवन का एक हिस्सा ही जैसे खो गया था।

समय अपने नियत चाल से चलता रहा, साथ ही अपनी परिवर्तनशील प्रकृति के चलते, चुपके-चुपके बिना बताए अनुपमा की व्यथा पर मरहम का फाहा भी रखता रहा। देखते ही देखते दो साल बीत गए। इस बीच अनुपमा का विवाह हो गया था। अपने व्यस्त जीवन के आवरण के कई पर्तों के अंदर अनुपमा ने आलोक की स्मृतियों को सहेजकर रख लिया था। एक दिन अनुपमा कॉलेज से घर लौटकर थोड़ा सुस्ता ही रही थी कि डोरबेल बज उठी। अलसाए क़दमों से अनुपमा ने दरवाज़ा खोला, लेकिन बाहर किसी को न पाकर झुँझलाहट में सोचा, “जाने कौन बेवजह परेशान कर रहा है।” लौटकर पुनः कुर्सी पर पसर गई।

लेकिन तभी आश्चर्य मिश्रित सिहरन से अनुपमा थरथरा उठी जब उसे सामने से एक आवाज़ सुनाई दी, “अनु प्लीज़, मुझसे डरना मत, मैं भूत नहीं हूँ।” आलोक की धीर, गंभीर, सधी हुई आवाज़ को अनुपमा तुरंत ही पहचान गई थी।

”लेकिन तुम हो कहाँ आलोक? मुझे तो तुम दिखाई ही नहीं दे रहे हो।”

“मैं तुम्हारी सामने वाली कुर्सी पर बैठा हूँ, अनु, पर तुम मुझे नहीं देख पाओगी, मैं तुम्हें सारी बातें बताता हूँ।” आलोक की बात सुनकर अनुपमा का सारा शरीर ही मानो कर्णमय हो गया था, वह सब कुछ जल्दी से जान लेना चाहती थी।

“अनु, तुम तो जानती ही हो कि लगभग दो वर्ष पूर्व मैं पूरी तन्मयता से अपने निजी प्रयोगशाला में एक नायाब आविष्कार करने की कोशिश में था। दिन रात की मेहनत के बाद आख़िरकार मैंने एक ऐसी दवा का निर्माण कर ही लिया जिसे पीते ही कोई भी व्यक्ति अदृश्य हो जाए। मैंने इस दवा का सफल परीक्षण चूहों और ख़रगोशों पर भी कर लिया था। इतना ही नहीं, मैंने साथ-साथ उस दवा की प्रतिकारी दवा भी बना ली जिसे पीते ही व्यक्ति पुनः अपने साकार स्वरूप में आ जाए। अर्थात्‌ मैंने दो दवाओं का आविष्कार किया, पहली वाली अदृश्य होने के लिए और दूसरी वाली पुनः दृश्य होने के लिए। लेकिन शर्त यह थी कि दूसरी दवा तभी काम करती थी जब वो पहली वाली दवा लेने के एक घंटे के अंदर ही ली जाए, अन्यथा की स्थिति में व्यक्ति के हमेशा के लिए अदृश्य हो जाने की आशंका थी। अनु, बस यहीं मुझसे चूक हो गई।”

धड़कते दिल से अनुपमा, आलोक की अविश्वसनीय बातों को बहुत ध्यान से सुन रही थी। आलोक ने आगे कहा, “अनु, अपने शोध को कामयाब जानकर मेरे पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। आनंद और उत्साह के अतिरेक में मैंने स्वयं ही अदृश्य होने वाली पहली दवा को लेने का निश्चय किया था। दवा लेकर मैं घर से बाहर निकल पड़ा, बाज़ार और मॉल घूमता रहा, लोगों को मैं बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रहा था, मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था, मैं जाने कितनी ही देर तक यूँ ही मज़े लेता रहा। मैं भूल गया कि दूसरी दवा एक घंटे के अंदर ही लेनी है। जब तक मुझे ये बात याद आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके बाद मैंने कई बार दूसरी दवा ली लेकिन मेरे साथ अनहोनी हो चुकी थी। उस दिन जब तुम मुझे ढूँढ़ते हुए मेरे घर आई थी, तभी मैं तुम्हें सब कुछ बता देता, लेकिन तुम्हें अत्यधिक डरा हुआ देखकर मेरी हिम्मत नहीं हुई। उसके बाद मैंने ख़ुद को दृश्य रूप में लाने के लिए बहुत से शोध और बहुत प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाया। अब शायद मैं जीवन भर ऐसा ही रहूँगा,” कहते कहते आलोक की आवाज़ भर्रा उठी।

अनुपमा भी अपने आँसू नहीं रोक पाई।

“अनु पूरी दुनिया मुझे भूत समझकर मुझसे डरती है, कोई बात नहीं। लेकिन तुम तो मेरी दोस्त बनी रहोगी ना? मुझसे डरना मत अनु, वर्ना मैं तो जीते जी मर जाऊँगा। अनु, तुम्हारे अलावा कोई भी मेरा अपना नहीं है।” आलोक फफक कर रो पड़ा।

संवेदनशील अनुपमा कुछ भी कह सकने की स्थिति में नहीं थी, फिर भी रुँधे गले से कहा, “मैं तुम्हारे साथ हूँ आलोक, अपने दोस्त से भला कोई डरता है।”

“अनु मैंने इन आविष्कारों पर दो शोधपत्र लिखे हैं। अब इस दुनिया के लिए मैं तो मर चुका हूँ, इसलिए अब ये तुम्हारे ही नाम से छपेंगे, इनमें फिजिक्स का उपयोग भी किया गया है, मैं तुम्हें नोट्स दे रहा हूँ, पढ़ लेना। विज्ञान की दुनिया में ये शोधपत्र तहलका मचा देंगे। मैं चाहता हूँ तुम्हारा ख़ूब नाम हो। मैं तुमसे बात करने अक़्सर आता रहूँगा।” कहकर आलोक चला गया था। करुणा से भरे हुए अपने भावुक मन के साथ अनुपमा बहुत देर यूँ ही चुपचाप बैठी रही। आज उसने अपना खोया हुआ दोस्त पुनः पा लिया था।

3 Likes · 2 Comments · 129 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr. Sukriti Ghosh
View all
You may also like:
*कागभुशुंडी जी थे ज्ञानी (चौपाइयॉं)*
*कागभुशुंडी जी थे ज्ञानी (चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
सन् 19, 20, 21
सन् 19, 20, 21
Sandeep Pande
नाहक करे मलाल....
नाहक करे मलाल....
डॉ.सीमा अग्रवाल
कुछ लोग बहुत पास थे,अच्छे नहीं लगे,,
कुछ लोग बहुत पास थे,अच्छे नहीं लगे,,
Shweta Soni
पहाड़ में गर्मी नहीं लगती घाम बहुत लगता है।
पहाड़ में गर्मी नहीं लगती घाम बहुत लगता है।
Brijpal Singh
// अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद //
// अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद //
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
बिहार से एक महत्वपूर्ण दलित आत्मकथा का प्रकाशन / MUSAFIR BAITHA
बिहार से एक महत्वपूर्ण दलित आत्मकथा का प्रकाशन / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
यूं ही नहीं होते हैं ये ख्वाब पूरे,
यूं ही नहीं होते हैं ये ख्वाब पूरे,
Shubham Pandey (S P)
परिश्रम
परिश्रम
ओंकार मिश्र
कर्म
कर्म
Dhirendra Singh
वक्त के दामन से दो पल चुरा के दिखा
वक्त के दामन से दो पल चुरा के दिखा
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
गुलशन की पहचान गुलज़ार से होती है,
गुलशन की पहचान गुलज़ार से होती है,
Rajesh Kumar Arjun
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
Madhuyanka Raj
■ सीधी सपाट...
■ सीधी सपाट...
*Author प्रणय प्रभात*
प्रेम के नाम पर मर मिटने वालों की बातें सुनकर हंसी आता है, स
प्रेम के नाम पर मर मिटने वालों की बातें सुनकर हंसी आता है, स
पूर्वार्थ
*कोई किसी को न तो सुख देने वाला है और न ही दुःख देने वाला है
*कोई किसी को न तो सुख देने वाला है और न ही दुःख देने वाला है
Shashi kala vyas
कलियों सा तुम्हारा यौवन खिला है।
कलियों सा तुम्हारा यौवन खिला है।
Rj Anand Prajapati
रिश्तों का एहसास
रिश्तों का एहसास
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मुझे ना छेड़ अभी गर्दिशे -ज़माने तू
मुझे ना छेड़ अभी गर्दिशे -ज़माने तू
shabina. Naaz
कल पर कोई काम न टालें
कल पर कोई काम न टालें
महेश चन्द्र त्रिपाठी
“POLITICAL THINKING COULD BE ALSO A HOBBY”
“POLITICAL THINKING COULD BE ALSO A HOBBY”
DrLakshman Jha Parimal
दो ही हमसफर मिले जिन्दगी में..
दो ही हमसफर मिले जिन्दगी में..
Vishal babu (vishu)
पानी
पानी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
2303.पूर्णिका
2303.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
"वक्त के पाँव"
Dr. Kishan tandon kranti
Pyar ke chappu se , jindagi ka naiya par lagane chale the ha
Pyar ke chappu se , jindagi ka naiya par lagane chale the ha
Sakshi Tripathi
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
अयोध्या धाम
अयोध्या धाम
Mukesh Kumar Sonkar
फिर से अरमान कोई क़त्ल हुआ है मेरा
फिर से अरमान कोई क़त्ल हुआ है मेरा
Anis Shah
आदिशक्ति वन्दन
आदिशक्ति वन्दन
Mohan Pandey
Loading...