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27 Jul 2021 · 11 min read

अनपढ वायरस

आज जब हम अपने आपको एक और समृद्धि, बुद्धिमान, शिक्षित, तथा स्वर्णिम युग के होने का गौरव धारण करने के लिए उद्विग्न है तो वहीं दूसरी ओर निरक्षरता समाज को एक विषैले वायरस की तरह खाए जा रहा है। खोखला किया जा रहा है निरक्षरता रूपी अनपढ़ वायरस का निराकरण अत्यावश्यक है ।समाज को परिष्कृत करने के लिए इन सुरसा का मुंह बंद करना आवश्यक है ।आज भी लोग अनपढ़ हैं और दूषित, कुलटा विचार वालों के हाथों की बलि का बकरा बन रहे हैं ।
किसी गांव में एक घूर्णन झा नामक किसान अपने सुखमय जीवन की समृद्धता के साथ आनंद पूर्ण जीवन निर्वाह कर रहे थे ।अपने अनपढता के आवरण मध्य भी सुखी संपन्न थे । उन्हें परमेश्वर नामक एक पुत्र था जो ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं था किंतु अनपढ़ भी नहीं कहा जा सकता है। अपने घर का इकलौता होने के कारण पढ़ा लिखा था या नहीं था, सब ठीक था ।पर्वतेश्वर की बचपन में ही शादी भी हो चुकी थी। उसके भी एक छोटे से पुत्र जन्म ले चुके थे।पर्वतेश्वर को गांव के हर लोग परवल कह कर पुकारा करते थे।
जैसा कि हर गांव की परिपाटी होती है जब लड़के बड़े हो जाते हैं तो नौकरी हेतु राज्यांतर चले जाते हैं ।उन्हें प्रशासनिक नौकरी हो या ना हो।परवल भी उन्ही उद्देश्य की पूर्ति हेतु दिल्ली चला जाता है और वहीं धनार्जन करने लगता है।
परवल का ही एक साथी वशिष्ट अर्थात बसिया होता है जो गांव में ही रहता है किंतु वह काफी झूठा चतुर, धूर्तबाज, कैसे किसी को ठगा जाए, किसी से धन अर्जित किया जाए वह भली भांति जानता था। इस तरह के कार्य को करने में ना तो उसे लज्जा आती थी और ना ही पश्चाताप। उसे अपने द्वारा किए गए हर कार्य में गौरव की अनुभूति होती थी । जैसा कि हम सब जानते हैं जो बुद्धिमान होते हैं उन्हें लज्जा नहीं आती है। उसे अपने इस तरह की कामयाबी का अभिमान होता है। बसिया भी ऐसा ही था ।
परवल जब से दिल्ली कमाने गया है तब से उसके घर का कोई भी छोटा से छोटा और बड़ा से बड़ा कार्य बसिया अर्थात वशिष्टि किया करता था। हां! गांव के लोग बसिया से सतर्क रहते थे किंतु बेचारे घूर्णन झा सीधे-साधे होने के कारण किसी भी काम के लिए बसिया से ही कहा करते थे। उसी पर विश्वास करते थे और – – – – ।
परवल के पड़ोस में ही रहने वाली एक झुमकी अर्थात बसुंधरा थी जो पटना में ही रहकर बी.सी.ए की तैयारी कर रही थी।झुमकी पढ़ी-लिखी होने के साथ-साथ एक चंचल चित्त वाली भी थी। तभी तो उसका नाम झुमकी पड़ा था झुमकी के परिवार भी पढ़े लिखे थे और दूसरों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे किंतु गांव में ——–।झुमकी तथा उसके परिवार वाले बसिया की हरकत से भलीभांति परिचित थे इस कारण बारंबार परवल की पत्नी को पढ़ने के लिए कहा करते थे किंतु ना तो घूर्णन झा ना उनकी पत्नी और ना ही तो परवल की पत्नी पढ़ना चाहती थी। वह तो कोसों दूर रहना पसंद करती थी ।घुर्णन झा की पत्नी का मानना था कि संस्कारी बहू में पढ़ाई की कोई आवश्यकता ही नहीं है।———।
एक दिन प्रातः काल झुमकी शोर मचाते हुए आई भौजी! भौजी! कहां हैं बहुत दिनों से आपका शुभानन नहीं देखे हैं ।कहां हैं भौजी! अंदर से मुस्कुराते हुए परवल की पत्नी बोली -अरे आप? झुमकी भी मुस्कुराते हुए बोली हां हम !( पैर छूकर प्रणाम करती है ) खूब खुश रहिए !कब आए —–।दोनो ननद-भौजाई की वार्तालाप होते-होते परवल की पत्नी पूछ बैठी वियाह कब कीजिएगा?
झुमकी -एम.सी .ए के बाद ।
परवल की पत्नी -अब वियाह कर लीजिए हुआ पढ़ाई-लिखाई ।हम को एकगो बड़ा सुन्दर लड़का पसंद है ।दूनू सीता-राम की जोड़ी लगिएगा——–।
झुमकी -हट! शादी तो हम अपने पसंद का करेंगे। बिना देखे नहीं—–।(इसी समय परवल की माँ भी आ जाती है )।
माँ-(आश्चर्य में )कहिया आई ?
झुमकी -कल रात में! (कह कर पैर छूकर प्रणाम करती है )
परवल की माँ-खुश रहो!भगवती नीक घौर-वौर दें!
पत्नी -हम भी तो यही कह रहे हैं पर इनको पसंद ही नहीं है । क्या? देखिए बाहरी लड़का का कोई ठिकाना नही होता है, उसको कोई कुछ कह भी नहीं सकता है जो मन होता है वही करता है इसलिए वियाह सोच समझ कर करना चाहिए (बीच में ही झुमकी कहती है )हम कोई कम हैं क्या?
तो अर्ज है -:
“जहाँ देखे लड़के, वहीं दिल धड़के ,
जहाँ देखे लड़के वहीं दिल धड़के ,
पटे तो पटे , नहीं तो,
राखी बाँधके सरके ।वाह! वाह!कह कर खिलखिलाती है ।(सास-बहू दोनों एक-दूसरे को देख कर अचंभित रह जाती है )
मां- अच्छा बहुत देर हो गया तब तक झुमकी को कुछ जलपान कराओ ! हम नहा कर पूजा पाठ करके आते हैं फिर माय बेटी भरपेट गपशप करेंगे।
झुमकी -भौजी! हां हमें भी भूख लगी है शायद काकी मन की बात समझ गई ।क्या खाना बनाई है?
पत्नी-छौरा बाप को लटपटा दिए और रोटी( बीच में ही झुमकी बोल पड़ी छोरा बाप का क्या मतलब ?)
पत्नी- आपके भाईजी के नाम वाला तरकारी बनाए हैं। हम उनका नाम कैसे ले सकते हैं। पति का नाम लेना पाप है । नरको में ठेलम ठेला होगा ।इसलिए—-।
झुमकी -नाम लेने से आपको पाप लगता है (हंस कर बोली) गरुड़ पुराण में कहा गया है जो स्त्री अपने पति से झगड़ा करती है वह डील(जू) में जन्म लेती है ।बताइए कितनी स्त्रियां अपने पति से झगड़ा नहीं करती है? बेचारा पति सोचता है इस जन्म में औरत से शादी कर लिए पर अगले जन्म में शादी मर्द से ही करेंगे बेचारा——।
पत्नी -हम थोड़े ही झगड़ा करते हैं शुरुआत तो वही करते हैं न थोड़ा- बहुत पति-पत्नी में झगड़ा होता रहता है यह तो ऊपरे से ही लिखा कर आया है । इसमें बड़का बात क्या है, हम छोड़ दें क्या? ऐसा तो सब दिने से होता आ रहा है ।
झुमकी -नाम लेने से पाप और झगड़ा करने से पुण्य मिलता है।(परवल की माँ आंगन में ही नहा रही होती है)
माँ- तुम्हारा वियाह नहीं हुआ है ना जब तुम्हारा वियाह होगा तब तुम भी नाम नहीं लेगी ।और पुराने लोगों का कहना है ।
झुमकी -हम तो— एक बात बताइए जिसके पति का नाम शंकर होगा तो वह भगवान का गीत कैसे गाएगी।
“पर्वत के ऊपर छौरी बाप (शंकर ) होगा ,
चलो सखी मिलने दिगंबर होगा,
सब साथ मिलकर गंगा जल भर लाएंगे,
छौरी बाप (शंकर शंकर ) रटते भोले को चढ़ाएंगे,
इससे हमारा दुख भंजन होगा ,
चलो सखी मिलने दिगंबर होगा।—–। हा हा हा बताइए क्या मूर्खों वाली बात है। छौरी बाप को खाना बनाकर खाने में पाप नहीं है ,झगड़ा करने में पाप नहीं किंतु नाम लेने में पाप है?????? नो! नो ! हम तो नाम लेंगे लेंगे ही।
पत्नी – आप ऐसा नहीं कर सकते ,नरकों में ठेला ठेला होगा ।लड़का का क्या? जो चाहेगा कर सकता है ।पर कनिया तो कनिया होती है उसको पाप धर्म मानना पड़ता है ।
झुमकी -हम तो गीत गाएंगे “हम पिया न नचैब टावर पर, हम पिया नचैब टावर पर”( इसी बीच आवाज आती है तुमको घर नहीं आना है क्या? ——–।हाँ माँ! हम आ जाते हैं भौजी! नहीं तो मां हमको झाड़ू से झड़ूआ देगी । कह कर हंसती हुई झुमकी चली जाती है।
मां जी ! देखें कैसे कैसे बोल रही थी थोड़ा भी लाज-धाक नहीं है ना तभी तो सरके सरके कर रही थी कैसे गीत गा रही थी बाप रे! बाप! घोर कलयुग—–।
माँ- हम तो बोले ना कॉलेज की फेरल है(जिस समान का हम मन चाहा व्यवहार कर के छोड़ देते हैं। फेरल कहलाता है) बाहर रहती है क्या करती है क्या नहीं करती है पता नहीं। बाहर में चरितर हीन लड़की ही अकेले रहती है। इसलिए तो हम पढ़े-लिखे से अपना बेटी का वियाह नहीं करवाए। जानती हो परवल के लिए कितना वरतुहार आया लेकिन हमको संस्कारी बहू से मतलब था पढा लिखा से नहीं । जो गांव समाज को समझ सके । इज्जत प्रतिष्ठा बनाए रखें। हम इस मामले में पैसा को भी लात से ठुकरा दिए हैं। हमको तो झुमकी के घर के लोग समझ में नहीं आते अपनी बेटी को फेरल वाला बना दिए हैं और हमको भी कहते हैं कनिया को पढ़ाइए ताकि हमारे घर में भी ऐसे ही कॉलेज के फेरल लड़की हो जाए बऊआ (परवल का बेटा) बढ़ेगा तो पढेगा
पत्नी -मा! जी हमसे भी कहती है पढ़ने के लिए हम तो——–।
कुछ दिनों बाद एक डाकिया पत्र दे जाता है। परवल की पत्नी बेचारी पढ़ी-लिखी थी नहीं जो पत्र पढ़ पाती कौन पढ़ेगा । झुमकी के घर में पढ़ाई का वातावरण है किंतु उसका उपदेश कौन सुनेगा फिर बोलेंगे आप भी पढ़ना सीखिए। पढी होती तो आप अपना पत्र पढ़ सकती थीं। वगैरह-वगैरह–।बसिया जी से ही पढ़ा लेंगे ।कौन उपदेश सुनेगा ।पत्र के लिए बसिया की प्रतीक्षा होती है मिलने पर बसिया को पत्र पढ़ने के लिए दिया जाता है ।
पत्नी- क्या लिखा है ?जरा पढ़ कर बताइए न? बसिया पत्र पढ़कर बोलता है सब ठीक है। सब कुछ ठीक है। कुछ कहना है तो पत्र में लिखने के लिए कहा है ।
पत्नी -हमको ₹2000 चाहिए क्योंकि हम नैहर जाएंगे तो बबीता का वियाह होने वाला है तो कुछ खर्चा- बर्चा तो अवश्य होगा।
बसिया -हम भी किसी काम से दिल्ली जाने वाले हैं, कहिए तो हम परवल को चिट्ठी दे देंगे।आपके पास फोन तो नहीं है ।
पत्नी – भई !भक! हमको उ सब अच्छा नहीं लगता है। हम चिट्ठी दे देंगे (बसिया बोला )
पत्नी -मेरे लिए दो हजार जरूरी लिख दीजिएगा बसिया पत्र लिखता है जो जो परवल की पत्नी कहती है। बसिया -अच्छा इस पर निशान लगा दीजिए । काहे की लोग हम को गलत कहते हैं पर हम एको पैसा गलत नहीं है लोग हमको जो समझे कह कर 3000रू देने की बात लिख कर चला जाता है ।
दिल्ली में दोनों मित्र मिलते हैं हालचाल पूछने के बाद बसिया चिट्ठी परवल को दे देता है परवल पत्र पढ़कर हंसता है और कहता है अरे! हम तुम्हारी भौजी को कहते हैं एक फोन रख लो पर वह बात नहीं मानती है ठीक है और भी रुपए दे दे क्या? नहीं भाई हमको लोग झूठे बदनाम कर दिया है हम नहीं ले जाएंगे हां हमको भौजी जो बोले हैं सो दोगे तो दे दो हम भौजी को दे देंगे (बसिया ने कहा )
परवल- ठीक है! पत्र के अनुसार ₹3000 बसिया को दे देता है और बसिया भौजी को दो हजार देकर 1000 अपने जेब में रख लेता है ।
कुछ दिनों के बाद एक दिन परवल के पिता ने बसिया को ढूंढते हुए उसके घर जाते हैं बसिया रे ! बसिया रे ! कहां हो ?तभी उसकी मां बाहर आकर कहती है बसिया तो घर पर नहीं है ।क्या काम है? हम उसको बता देंगे । घूर्णन झा बोले कोई बात नहीं हमारे घर पर उसको भेज दीजिएगा। जब आएगा ।ठीक है ।
आप हम को खोज रहे थे बसिया ने कहा
घुर्णन झा -हाँ रे! एक बात सुना है कि अभी जमीन का सर्वे चल रहा है सबको कागज पत्तर सही करना है। हम तो पढ़े हैं ,नहीं परवल यहां है नहीं, तुम्हीं जरा कर दो ना बसिया -ठीक है कक्का !(कुछ सोचकर )कक्का उसमें दरखास लिखना पड़ता है ।
घुर्णन – तुम लिख दो, हम अंगूठा लगा देंगे ।
बसिया -ई काम दूसरे से करबा लीजिएगा, हम नहीं करेंगे ।———।
घुर्णन -धूर बुड़बक! चिंता किये करता है, अंगूठा लगा देगे न ,तुम देखो तुम दरखास लिखो ।
बसिया कागज पर क्या लिखता है कुछ पता नहीं उस पर अंगूठा का निशान लगवा लेता है ।
बसिया – कक्का हजार -पांच सो भी लगेंगे ।
घुर्णन – परवल माय ! परवल माय !बसिया को रुपया दे दो । जमीन का काम करवाना है। ससुर के नाती सरकार का आदमी भी पैसा खाता है ।ससुर के नाती कहीं का। परवल की माँ बसिया को रुपया दे देती है। बसिया भी ना जाने किन कागजों पर समय-समय पर अंगूठे का निशान लगवाता है
( एक दिन बाद एक ग्रामीण दौड़ता हुआ आता है) कक्का !कक्का ! घुर्णन कक्का! काकी !आपका जमीन बसिया जोत रहा है ।कह रहा था अब ई जमीन हमर है ।घुर्णन कक्का हमरा नामे ई जमीन लिख दिए हैं चलिए न देखिए न———।
घुर्णन – हम उसको काहे लिखेंगे हमरा बेटा पोता नहीं है क्या? चल त ससूर का नाती——-।
बसिय बड़े ही मगन होकर गीत गा रहा था।
” सीताराम सीताराम सीताराम कहिए जाहि विधि होए काम ताहि विधि कीजिए———-“
घुर्णन – रे तुम! की कर रहा है?——-?
बसिया-ई जमीन अब आपका नहीं है । आप ही तो ई जमीन हम को लिखे थे। अपना अंगूठा निशान— फिर कहता है सीताराम सीताराम सीताराम कहिए जाहि विधि होए काम ताहि विधि कीजिए सीताराम– आप हमको लिख दिए हैं ।
घुर्णन -रे तुम हटता है कि नहीं( कहकर हाथ से कुछ कुदाल छिनने का प्रयास करते हैं)
बसिया – हमको हमर करने दीजिए नहीं तो हम पुलिस बुलवा लेंगे।
ग्रामीण- तुम कक्का के लिए पुलिस बुलबाओगे । बसिया – हमको ई जबर्दस्ती जमीन लिखे हैं। दरखास में देख लो ।बेटा बहू से तंग आकर हमको ई जमीन लिख दिए दिखा दे दरखास क्या ?दिखा दे?—-
घुर्णन -कौन कहा! हम बेटा से परेशान हैं कौन कहा रे!——।
बसिया आप तो लिखबे किए हैं—-।
घुर्णन – बाप रे! बाप! हमको ठग लिया, हमको, बाप रे बाप !——
(गांव में आग की तरह या खबर फैल जाती है)
माँ- निपुतरिया!रे! सातों जन्म तुम निपुतर ही रहेगा रे सरधुआ!निर् वंशा के जनमल! हमरा जमीन हरप लिया रे! रे !अभोगिया रे , अभोगिया! रे! कोरिहिया , रे मरते किसी को देखा नहीं था रे!निर् वं—–आं आं हऽ ——–।
(बहुत सारे लोग इकट्ठा हो जाते हैं सब बसिया के विषय में बोलने लगते हैं झुमकी तथा उसके परिवार वाले भी आ जाते हैं )
उसी समय सर्वे शिक्षा अभियान की शिक्षिका भी वहाँ से गुजर रही होती है तो वह भी पहुंच जाती है ।
शिक्षिका -माँ जी! माँ जी! क्या हुआ? हम पढने और बहू को पढाने के लिए बोले थे न?अगर आप पढी होतीं तो ——–।
माँ -बेटा! हमको उ बसिया ठग लिया ।उ निर् वंशा के जनमल को तो—–।
शिक्षिका -गाली देने से जमीन आ जाएगा क्या? (बीच में ही झुमकी बोल पड़ी। हम भी तो बार-बार कह रहे थे पढ़ने के लिए ।
माँ -हाँ हमको अपना बहू को काॅलेज का फे रऽ ल ऽ–नहीं! नहीं! बेटा तुम ठीके कह रही थी ।
शिक्षिका -पढ़ने में क्या लज्जा, ज्ञान कभी भी, कोई भी अर्जन कर सकते हैं —-।
परवल की पत्नी -(मैडम को धीरे से बोलती है ) मैडम पढ़ने से औरत चरितर हीन हो जाती है ।(इशारे से झुमकी की ओर दिखा कर बोलती है) देखिए न फड़के,फड़के करती रहती है लाज-धाक ——-।
शिक्षिका -कौन कहता है? हमलोग चरित्र हीन हैं क्या? कौन कहा आप से ये चरित्र हीन है? ये तो आप से मजाक करतीं हैं । पढने सेे ज्ञान बढता है ,चरित्रहीनता नहीं!
परवल की पत्नी -लोग तो उनको फेरले कहते हैं।
शिक्षिका -कौन कहा कहने वाले मूर्ख हैं—–।
माँ -चुप रहो! अब तुम भी पढोगी और तुम भी ए.सी.ए कि सी .सी. ए जो होता है ,तुमको भी करवाएंगे —।
शिक्षिका -(मुस्कुराते हुए)माँ जी! पहले साक्षर तो कीजिए, फिर कुछ और ।बहू ही क्यों आप भी पढ सकतीं हैं।वृद्धों की भी शिक्षा होती है, इसमें लाज कैसा? सबों को पढ़ने का अधिकार है, सबों के कर्तव्य हैं, सर्व शिक्षा होनी चाहिए ——।
माँ -पर बसिया निर् वंशा के जनम—-।
झुमकी फिर बीच में ही टपक कर बोलती है कल से ही नहीं! नहीं! आज से ही भौजी पढेंगी और काकी भी–।
शिक्षिका -देश से अनपढ़ वायरस को मिटाना है ।
झुमकी -और अपने साथ देश को सशक्त बनाना है ।
झुमकी – कैसे मिटेंगे अनपढ़ वायरस,
शिक्षिका – जब पढेंगे अक्षर सोरस ।

(एक तरह से सब नारा की तरह बोल पड़ते हैं ।
कैसे मिटेंगे अनपढ वायरस,
जब पढेंगे अक्षर सो रस ।
समाप्त

उमा झा

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