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23 Feb 2024 · 1 min read

अनपढ़ रहो मनोज (दोहा छंद)

भ्रष्टाचारी हैं यहाॅं, पढ़े लिखे सब लोग।
फैल रहा है देश में ,तेजी से यह रोग।।
बातों से सब देवता, कर्म से लगें असुर।
पैसा जिनके पास है,अपनों से हैं दूर।।
नौकर सारे बन गए,इतने हुए फकीर।
शहर हुए आबाद सब, गाॅंव बहाए नीर।।
टुकड़े हुए जमीन के,घर में फैली आग।
माली बैठा देखता, उजड़ रहा है बाग।।
सुख का कमरा एक था,दुख के कमरे चार।
अलग-अलग कमरे हुए,मन में पड़ी दरार।।
पढ़-लिखकर यह क्या हुआ,यही सोचता रोज।
यही पढ़ाई है अगर, अनपढ़ रहो मनोज।।

मनोज कुमार महतो
बिरला पुर (पश्चिम बंगाल)

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