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29 Oct 2020 · 2 min read

अनकहे रिश्ते

वह मुस्कुराई और धीरे-धीरे चल कर मेरी ओर आने लगी। न जाने क्यूँ मुझे भी बड़ी बेकरारी से उसका इंतज़ार रहता था। मेरी मुस्कान देख वह खिलखिलाकर हँस पड़ी और साथ में मैं भी।
बस इतनी ही मूक प्रतिक्रियाएं थीं हम दोनों के बीच।
मार्निंग वाक में यदि सुबह-सुबह उसका प्यारा मुखड़ा न देखूँ तो मेरा दिन अच्छा नहीं निकलता यह बात मैंने गौर की थी।
खैर साहब। अब तो रोज़ का रुटीन हो गया और मार्निंग वाक का एक
गुरुत्वाकर्षण सा मुझे पार्क की तरफ खींच ले जाता। घर के सदस्य भी मुझ पर हँसने लगे थे लेकिन मेरा मन उसके साथ एक रिश्ते सा जुड़ गया था।
घर जाकर वही भागम-भाग और आफिस की तैयारी। सही 10 बजे आफिस के सामने गाड़ी पार्क की फिर तो शाम 5 बजे तक सिर उठाने की भी फुर्सत नहीं। हाँ मगर उसकी याद और उसका प्यारा चेहरा जेहन से न हट पाता। पता नहीं क्या रिश्ता था उसका मुझसे।
आफिस से घर आकर चाय बनाकर पी फिर कुछ देर आराम किया क्योंकि आज शाम को स्टाफ के किसी कलीग की बर्थडे पार्टी में भी जाना था।
फिर से आँखों के आगे उसका चेहरा। ऐसा कौन-सा पूर्व जन्म का रिश्ता है उससे जो बार- बार याद आती है।
कल तो पार्क में पूछना ही है कि वह कौन है किसकी बेटी है।
दूसरे दिन..
आज पार्क में घूमते समय मन बड़ा उदास है। वह दिखाई नहीं दी। कुछ पता करने पर मालूम हुआ कि वह बीमार हो गयी है पास ही के फ्लैट में रहती है अपने मम्मी-पापा व दादी के साथ।
एक सप्ताह बाद मार्निंग वाक करते हुए उसकी याद आ रही थी कि अकस्मात पीछे से एक मधुर घंटी सी बजी-“आं… ती” और फिर वही खिलखिलाहट।
मेरी तो बांछें खिल गयीं। वह दोनों बाहें फैला कर मेरी ओर दौड़ी। मैं भी दौड़ कर उसके पास जा पहुंची और उसकी दादी व माँ की परवाह किए बिना लपक कर उसे गोदी में उठाकर कलेजे से लगा लिया।
दादी ने हंसते हुए बताया – “बहुत याद करती रहती है आपकी।”
” उन ताॅफी वाली आंटी ते पाछ ले तलो। वो भोत अच्ची एं। “यही रटन थी बुखार में इसकी।” उसकी माँ बोलीं।
“माफ कीजिएगा। मैंने तो कभी बच्ची का नाम भी नहीं पूछा मगर अंदरुनी लगाव इस क़दर हो गया है इससे कि एक दिन भी यह न दिखे तो मन बेचैन हो उठता है।”
दादी बोल उठी-” कुछ रिश्ते अनकहे रिश्ते होते हैं जो अनजाने में बन जाते हैं और उनका कोई नाम नहीं होता लेकिन उनकी अपनी एक अलग मिठास होती है।शायद पिछले जन्म के किसी नाते की वजह से। यही रिश्ता है आपका और रीशू का। ”
” जी सही फरमाया माँ जी” मैं बोली।
मैंने आज जाना कि मेरे इस अनकहे प्यारे-से मासूम रिश्तेदार का नाम है रीशू ।
रीशू थी कि गोदी से उतरने का नाम
ही नहीं ले रही थी।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 297 Views
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