अनकहा …
अनकहा …
अभिव्यक्ति के सुरों में
कुछ तो अनकहा रहने तो
अंतस के हर भाव को
शब्दों पर आश्रित मत करो
अंतस से अभिव्यक्ति का सफर
बहुत लम्बा होता है
अक्सर इस सफ़र में
शब्द
अपना अर्थ बदल देते हैं
शब्दों के अवगुंठन में
अभिव्यक्ति
मात्र मूक व्यथा का
प्रतिबिम्ब बन जाती है
भावों की घुटन
मन कंदराओं में
घुट के रह जाती है
जीने के लिए
कुछ तो शेष रहने तो
अभिव्यक्ति के गर्भ में
कुछ तो
अनकहा रह जाने दो
सुशील सरना /