*अधिक धन पर न इतराओ, नहीं यह सुख-प्रदाता है (हिंदी गजल/ गीतिका)*
अधिक धन पर न इतराओ, नहीं यह सुख-प्रदाता है (हिंदी गजल/ गीतिका)
_________________________________
(1)
अधिक धन पर न इतराओ, नहीं यह सुख-प्रदाता है
हमेशा स्वास्थ्य ही जीवन, सुखी हर्षित बनाता है
(2)
धनिक को नींद कब आई, सिवा करवट बदलने के
सदा से नींद एवं श्रम का गहरा एक नाता है
(3)
तिजोरी में भरा धन है, मगर मन लोभ का मारा
कहॉं संतुष्टि फिर धनवान, वह ऐसे में पाता है
(4)
बिता हमने दिया जीवन, धरा-धन मानकर अपना
पता चल अंत में पाया, कि मालिक तो विधाता है
(5)
जिसके पास धन-दौलत की सीमा ही नहीं है कुछ
सुना है एक रोटी सिर्फ, मुश्किल से ही खाता है
(6)
सफर यह जिंदगी का है, महज सौ वर्ष जीने का
टिकट इंसान फिर गंतव्य, नूतन का कटाता है
—————————————————
रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451