अथकित चलते जिनके पाँव
अथकित चलते जिनके पाँव ।
सिर पर बोझा है लदा हुआ ,
बाजू में दो बच्चे लेकर ।
अहसान जताते है अमीर ,
दो सूखी सी रोटी देकर ।।
सौ दो सौ मील चले आये हैं
आंखों से ओझल है गाँव ।
अथकित चलते जिनके पाँव ।।
आग उगलती कड़ी धूप ,
और पाँवों में जलते छाले ।
दे रहे चुनोती मौसम को ,
मजदूर स्वघर जाने वाले ।।
लक्ष्य साधकर चलते जाते ,
मन को लुभा न पाती छाँव ।
अथकित चलते जिनके पाँव ।।
लुंज पुंज मुरझाते शिशु ,
ज्यों तूफानों में दीप जले ।
छोड़ आसरा जीवन का ,
मझधारों में त्यों नाव चले ।।
जाने के अपराध बोध से ,
रुकें न कोई ढूढें ठाँव ।
अथकित चलते जिनके पाँव ।।
नहीं इन्हें विश्वास किसी पर ,
खुद पर है विश्वास बड़ा ।
दरकिनार उसको कर देते ,
राह रोकने अगर खड़ा ।।
ज्ञान बाँटने बालों की ध्वनि ,
लगती केवल काँव काँव ।
अथकित चलते जिनके पाँव ।।