अठखेलियाँ
तू मायूस होकर भी, मुस्कुराईं तो.
प्राण मुरदे में , जिंदगी लौटाई तो,
तू बोलती रही, मैं बस देखता रहा,
तेरे हर कटाक्ष को,दवा समझते रहा.
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बहते अश्कों की धार में तस्वीर तेरी
देखकर, सैलाब और उमडते रहा..
तेरी चुप्पी मेरे हर गुनाह पर पर्दे हैं.
इसी आश्वासन से आजतक जिंदा रहा.
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मैं देखता रहा, तेरे पलके झुकाये अंदाज,
आमंत्रण हौसले बुलंद मेरे करते रहे…
तेरे आलिंगन के समय कंपकपाते होठ,
डर तेरे वाजिब है, एक दूजे का मिलन.
एक दूजे का मिलन,एक कहानी बन गया.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस