अटल अटल (कविता)
बिषम परिस्थितियों से टकराना,
जीवन जिसका लक्ष्य रहा था।
कभी न हारा कभी न टूटा,
संघर्ष भरा जिसका जीवन था।
हिंद देश के स्वाभिमान हित,
हिंदुत्व जीवन जो जीता था।
कवि हृदय की कोमलता भी,
देशभक्ति को फौलादी था।
राजनीति के युद्ध क्षेत्र में,
निष्कपट होकर लड़ता था।
दुश्मन को भी गले लगार,
विकास मार्ग बतलाता था।
यदि न माने बात प्यार की,
युद्ध कारगिल सा लड़ता था।
शान्ति सुरक्षा की खातिर,
झुकना उसे स्वीकार नहीं था।
पोखरण परमाणु परीक्षण,
दृढ़ निश्चय का परिचायक था।
मातृभाषा के सम्मान की खातिर,
अंतरराष्ट्रीय मंच से बोला था।
देश और दुनिया को दिखलाया,
राष्ट्रभाषा की गरिमा का चोला,
पहने भारतीय योद्धा था।
पद पाने के लिए समझौता,
देशहित में स्वीकार नहीं था।
सत्ता रहें या चलीं जावे,
कुर्सी को ही नहीं जीया था।
पक्ष विपक्ष का भेदभाव भी,
जिसको बांट न पाया था।
सबका साथी सबका अपना,
अटल अटल कहलाया था।
अंतिम समय भी न घबराया,
मौत को ही बंधक बनाया था।
आजादी पर्व पर लहराये तिरंगा,
हाथ पकड़ समझाया था।
फिर भी अडी साथ ले जाने,
हाथ झटक ललकारा था।
राष्ट्रीय भावना की देख ललक,
काल भी दिल में हरषाया था।
मिला हाथ दे आश्वासन,
मौत को पीछे खींचा था।
कल चलने का वादा लेकर,
रथ को पीछे मोड़ा था।
नियत तिथि कल्कि अवतार दिवस,
रथ खड़ा आन द्वारे पर था।
अटल अटल सब पुकार रहें,
अटल ज्योति रूप में रथ पर था।
( राजेश कौरव”सुमित्र”)