अजीब सपना
मैं बैठा था घर में अकेला
कोई पास नहीं था मेरा ,
तभी अचानक एक सपना आया
मुझे अपने जाल में फंसाया;
सपना मुझे ले गया वहाँ,
जहाँ सब कुछ था उल्टा-पुल्टा;
आदमीको कुत्ता कुत्ते को आदमी
चीटी को हाथी कहते थे,
कौए को हंस हंस को कौआ
जहाँ बकरी को घोड़ा कहते थे;
वहां नाचते थे गाय और
मोर दूध देती थी,
मैं पहुँच गया था वहाँ
जहाँ गधे को राजा कहते थे;
शेर डरता था चूहा से
और बिल्ली को बाघ कहते थे,
हिरण उड़ते थे आकाश में
जहाँ मछली जमीं पर चलती थी;
वहाँ की बात एक दम निराली
सबकुछ था अजीब-सा ,
वहाँ इंसान जंगल में बसता
और जानवर घर में रहता;
इन्सान घास-फूस खाता था
जानवर खाते दूध-मलाई,
इंसान जो पढ़ने जाते कभी
तो उसकी होती जगहँसाई;
इन्सान वहाँ नंगे थे और
जानवर कपड़े पहने हुए,
देखा था हमने अपनी आँखो से
जानवर को इंसान की सवारी करते;
भूल जो इंसान से होता कभी
जानवर देते उनको सजा,
बंदर वहाँ का था न्यायाधीश
और गीदर वहाँ का वकील था;
देख कर वहाँ का हालात मैं
हैरान-परेशान हो गया,
मेरी परेशानी देखकर सपने ने
झट से मुझको वापस लाया;
क्या अजीब सपना था वह
मेरा सिर चकराने लगा,
गर ऐसा हकीकत में होता
तो क्या हाल होता हमारा !