*अच्छा लगता है (हिंदी गजल/गीतिका)*
अच्छा लगता है (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
कभी पाँचतारा होटल में, जाना अच्छा लगता है
कभी गोलगप्पे ठेले पर, खाना अच्छा लगता है
(2)
कभी धूप अच्छी लगती है, यह मन करता है बैठें
बारिश कभी-गगन में बादल, छाना अच्छा लगता है
(3)
वैसे तो तुमने हाँ में हाँ, मेरी सदा मिलाई है
कभी रूठकर उसके बाद , मनाना अच्छा लगता है
(4)
कभी चाहता हूँ यह, घर के कमरे में ही सुस्ताऊँ
कभी भीड़ को भाषण एक, सुनाना अच्छा लगता है
(5)
सचमुच कभी सोचता हूँ , अपमान-मान में क्या रक्खा
कभी किसी से तारीफों को, पाना अच्छा लगता है
(6)
कभी सोचता हूँ यह, पचड़े में पड़कर क्या करना है
कभी बहस में ढेरों प्रश्न, उठाना अच्छा लगता है
(7)
कभी छोड़कर पद-अभिनंदन, मैं आगे बढ़ जाता हूँ
कभी खेल में आकर टाँग, अड़ाना अच्छा लगता है
(8)
धन-संपदा कोठियाँ-बँगले, सभी यहीं रह जाना हैं
मगर पासबुक खाते की, भरवाना अच्छा लगता है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 7615451