*अचरज (#कुंडलिया)*
अचरज (#कुंडलिया)
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#अचरज दुनिया में यही ,दिखता है दिन-रात
रोज मरण के हाथ से ,जीवन खाता मात
जीवन खाता मात ,रोज शव-यात्रा जाती
नश्वर तन की बात ,बुद्धि में पर कब आती
कहते रवि कविराय ,राम को रोजाना भज
राम नाम है सत्य ,भला इसमें क्या अचरज
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 615451
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अचरज = आश्चर्य ,विस्मय ,अचंभा