अगरबत्ती
बदन पर शोला दहकाति
जलकर फना हो जाती,
फिर भी जूबाँ से कभी
उफ निकलती नहीं ;
किसी से कभी शिकवा न करती
ऊंच-नीच का भेद न रखती ,
सभी को एक-सी खुशबु बिखेरती,
शादी हो या श्राद्ध
पूजा हो या पाप,
हर जगह अपना कर्म
बड़ी खूबी से निभाती;
रहती है नजर के सामने
फिर भी उसे कोई न पहचाने,
दुनिया के लिए मिटनेवाली
शहीद नहीं कोई यह तो
है महज एक अगरबत्ती ।