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30 Oct 2022 · 3 min read

*अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विचार-गोष्ठी एवं काव्य-गोष्ठी*

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विचार-गोष्ठी एवं काव्य-गोष्ठी
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अर्बन नक्सल कलम: एक प्रश्न
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आज दिनांक 30 अक्टूबर 2022रविवार को जिला पंचायत सभागार ,रामपुर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से एक विचार-गोष्ठी एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी का विषय साहित्य का प्रदेय था । सौभाग्य से मुझे भी इन गोष्ठियों में भाग लेने का अवसर मिला ।
मैंने साहित्य का प्रदेय विषय पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो-एक दिन पहले अर्बन नक्सल कलम के खतरे का उल्लेख किया और कहा कि अर्बन नक्सल साहित्य और साहित्यकार वास्तव में देश के लिए खतरा बन चुके हैं। यद्यपि ‘अर्बन नक्सल साहित्य’ शीर्षक से कहीं नहीं लिखा जा रहा तथा कोई भी साहित्यकार स्वयं को ‘अर्बन नक्सल साहित्यकार’ नहीं कहता है, लेकिन फिर भी कुछ मापदंड हैं जिनसे हम इस प्रकार के साहित्य और साहित्यकारों के समूह की पहचान कर सकते हैं।
दरअसल यह वह लोग हैं जो हिंदुत्व की गंध आने पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं । इस राष्ट्र के सनातन भाव के प्रति जिनके मन में केवल भर्त्सना और उपहास ही रहता है । देश के सांस्कृतिक गौरव को यह हेय दृष्टि से देखते हैं । देवी-देवताओं के अपमान का कोई मौका नहीं छोड़ते । राष्ट्र को एकताबद्ध करने के प्रश्न पर इनका मतभेद है। देश के नैतिक पतन के लिए जो मुद्दे हानिकारक हो सकते हैं, यह उन्हें भरपूर उत्साह के साथ उछालते हैं। अतः ऐसे प्रकाशन को इनके द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है, जो अंततोगत्वा देश को भीतर से खोखला करने वाला हो ।
इसके विपरीत देशभक्ति के भावों से भरा साहित्य क्रांतिवीरों ने सेल्यूलर जेल की कालकोठरी के भीतर दीवारों पर लिखा, कंठस्थ किया और बाहर भेज दिया । इसी प्रकार भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजों के जबड़ों को खोलकर उनके ही दांत गिनने के समान रोमांचक कार्य रहा । ऐसा साहित्य जो मनुष्यता की भावना का विस्तार करता हो, वसुधा को कुटुंब के समान मानता हो, जिसमें भारत की पॉंच हजार साल से ज्यादा पुरानी संस्कृति आत्मगौरव के भाव से प्रकट हो रही हो तथा जो एकात्म राष्ट्रवाद के ध्येय को समर्पित हो, वही वास्तव में सच्चा साहित्य है।
आयोजन के दूसरे सत्र में मुझे अपनी एक देशगीत-रचना भारत जिंदाबाद पढ़कर सुनाने का भी अवसर मिला। प्रसन्नता का विषय है कि मंच और श्रोता दोनों की सराहना मुझे प्राप्त हुई । आयोजन में अच्छे साहित्यकारों और कवियों से मुलाकात, उनके विचार तथा रचनाऍं सुनने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ ।
सर्वाधिक ध्यान आकृष्ट किया, बरेली कॉलेज बरेली के पूर्व प्राचार्य डॉ एन.एल.शर्मा के रामपुर-विषयक विवेचन ने । एक-एक अक्षर की व्याख्या करते हुए आपने कहा कि रा का अर्थ रागात्मकता का संचार तथा राह का निर्माण है । से मनुष्यता की भावना का विस्तार कहा जा सकता है। पु का अर्थ पुरातन से जोड़ते हुए आधुनिकता में प्रवेश है तथा का अर्थ रचनाधर्मिता है । आपने साहित्यकार को तटस्थता छोड़कर सही पक्ष में खड़े होने का आग्रह किया और लोकमंगल की भावना से साहित्य सृजित करने की प्रवृत्ति पर बल दिया ।
बरेली से पधारे सुरेश बाबू मिश्रा ने महर्षि वाल्मीकि, रामप्रसाद बिस्मिल, माखनलाल चतुर्वेदी तथा प्रेमचंद के साहित्य का स्मरण करते हुए जनमानस को धर्म के मार्ग से विचलित न होने तथा लोक-कल्याण के पथ पर निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया । आपने बताया कि अक्सर एक छोटी सी पंक्ति भी यदि प्रभावशाली है तो किसी के जीवन को नया मोड़ दे सकती है।
अरुण कुमार , प्रवक्ता हिंदी, राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर ने इतिहास और साहित्य के परस्पर संबंधों पर बल दिया तथा कहा कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में साहित्य की भूमिका और भी अधिक बढ़ गई है ।
डॉक्टर ओम प्रकाश शुक्ल अज्ञात (कन्नौज) ने हॅंसी-मजाक की शैली में अपने वक्तव्य को प्रस्तुत करते हुए वातावरण को रोचक और रसमय बना दिया ।
काव्य गोष्ठी में उमेश गुप्ता (बरेली), रुचि गुप्ता (रामपुर), एस.पी. मौर्य (बरेली) डॉक्टर ओम प्रकाश शुक्ल अज्ञात (कन्नौज), चंद्र प्रकाश शर्मा (रामपुर), डॉ. हरि प्रकाश अग्रवाल (लखनऊ), सचिन सार्थक (रामपुर) तथा सूर्य प्रकाश पाल (मंत्री महोदय रामपुर) ने भी काव्य पाठ किया ।
काव्य-गोष्ठी का सुमधुर संचालन रोहित राकेश (बरेली) द्वारा किया गया । आपने काव्य की पंक्तियों का समुचित उपयोग करते हुए काव्य गोष्ठी को चार चॉंद लगा दिए । आयोजन के कर्ता-धर्ता चंद्र प्रकाश शर्मा (मिलक, रामपुर) बधाई के पात्र हैं।

Language: Hindi
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