“ अकेला चलो रे “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
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मैं अकेला ही चला था सफर में ,
कोई साथ मेरे हो ना सका था !
थी मुसीबत लाख राहों में हमारे ,
फिरभी मुझको हरा ना सका था !!
सहारे की जरूरत मुझे ना लगी ,
हवा के रुख को मैं जानता था !
आँधियों के थपेड़ों से डरता नहीं ,
मुझे तो बखूबी जूझना आता था !!
मुझे जो मिलते थे इन राहों में ,
उन्हें मंजिल तक पहुँचा देता था !
ना कोई शिकायत का ही इजहार ,
कभी ना स्वप्न में भी करता था !!
मुसाफिर हैं हमसभी इस डगर के ,
साथ जबतक साथ है चलते रहेंगे !
कारवाँके लोग अपनी मंजिलों पर ,
पहुँचकर फिर अकेले चलते चलेंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एसoपीoकॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
26.02.2022.