“अकेला काफी है तू”
काफी अकेला हूं मैं
काफी अकेला हूं मैं
काफी अकेला हूं मैं
कहता ही जा रहा था !!
अकेला काफी है ,तू
अकेला काफी है ,तू
अकेला काफी है ,तू
यही मैं समझा रहा था!!
समझा ना शब्दों को वो
समर्थन जता रहा था
कहता ही जा रहा था
कहता ही जा रहा था !!
अंधेरों में दिया अकेला
किरदार निभा रहा था
अंधकार का दोष ना
किसी पर लगा रहा था !!
सूर्य को ललकारने आई
जुगनूओ की है टोलियां
खुद की रोशनी को जुगनू
खुद्दारी वो बता रहा था !!
चाहिए अपनी रोशनी से
खुद को वह रोशन करें ,
चांद भी नित् आ करके
यही राग सुना रहा था !!
आसमान में नित् दिनकर
जमीन को रोशना रहा था
आदमी रूपी कठपुतली
ईश्वर ही चला रहा था !!
काफी अकेला हूं मैं
काफी अकेला हूं मैं
काफी अकेला हूं मैं
कहता ही जा रहा था !!
अकेला काफी है ,तू
अकेला काफी है ,तू
अकेला काफी है ,तू
यही मैं समझा रहा था!!
✍कवि दीपक बवेजा