अंधेरे आते हैं. . . .
अंधेरे आते हैं ……
ठहरो
कि अंधेरे आते हैं
ज़िहन की गहरायों में
यादों के सवेरे आते हैं
जिंदगी को बहकाते हैं
छोड़ आये जो मोड़
फिर वही दोहराते हैं
मोहब्बत के दरीचों से
ये किसकी सदा आती है
चश्म को नमनाक कर जाती है
किस्से बारिशों के दोहराती है
दिल की तड़प गुनगुनाती है
अहसासों के जलजले
थमते ही नहीं
पर्दे से मंज़र बदलते ही नहीं
ख़याल
आते हैं गुज़र जाते हैं
गुजारिश है तुमसे
जरा ठहरो
कि अंधेरे आते हैं
सुशील सरना / 19-2-24