अंदाज-ए-इश्क़
आज यह मौसम कितना सुहाना है।
ऐसे मौसम का मजा हमे उठाना है।
मिलने आ रही हो ना तुम बोलो तो
या आज भी कोई नया सा बहाना है।
हजारों में एक तुम ही इन्तिख़ाब हो
कैसे कह दू पीछे ज़ालिम जमाना है।
अंदाज-ए-इश्क़ चला साथ-साथ मेरे
अदाएं तिरे सच मे बड़ा क़ातिलाना है।
यहाँ वहाँ कहाँ-कहाँ ढूढ़ रही तू हमे
तेरे दिल मे ही तो मेरा आशियाना है।
दोनों के दरमियां जो दूरिया बढ़ गई
क़रीब चले आवो ना उसे मिटाना है।
तुमसे दूर होकर ही इश्क़ को जाना है।
अपना तो तेरा दिल ही एक ठिकाना है।
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)