अंदर का चोर
घर के पिछले दरवाजे से चुपके से घुसने वाला वो कोई चोर नहीं है ,
वह घर वाला है जिसके दिल में बैठा चोर वही है ,
यह दिल में बैठा चोर हमेशा बच कर निकलने कोशिश कर,
सच का सामना करने से कतराता है,
कहीं उसकी कलई खुल न जाए इस बात से घबराता है ,
झूठी कहानियां गढ़ता है, लाख बहाने बनाता है ,
झूठ की परत दर परत मे सच को छुपाता है ,
दिन रात इसी उधेड़बुन में लगा रहता है ,
यह अंदर का चोर बाहरी चोर से खतरनाक है ,
बाहरी चोर तो सामान चुराता है , जिसे फिर खरीदा जा सकता है ,
परंतु अंदर का चोर दिल और दिमाग को चुराकर खाली कर देता है ,
जिसके वशीभूत आदमी अपने आपको उसके
हवाले कर उसकी कठपुतली बन जाता है।