अंत से प्रारंभ की ओर ” अटल जी ” को सशरीर आखिरी प्रणाम
ये पंचतत्व में मिश्रित पंचामृत है
सबको चखना है ये जो अमृत है ,
इस शाश्वत को तुम अस्वीकार नही सकते
इस सत्य से तुम भाग नही सकते ,
सबको जीना है इसको
सबको पीना है इसको ,
मैं अनोखा नही तुम सबसे
तुम भी गुजरोगे इसमे से ,
जिस तिरंगे को सम्मान दिया
कभी ना इसको झुकने दिया ,
इसके मान में सौ बार मैं मर जाऊँ
अरे !
कभी मैं भी तो इसमें लिपटने का सुख पाऊँ ।।।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17 – 08 – 2018 )