अंतराल
आज फिर बादल
घिर आए
आज फिर ठंडी
बयार चली
आज फिर मौसम ने
करवट बदली
रह रह कर
बूँदों की
फुहार चली
बचपन होता तो
अच्छा लगता
भीगते झूमते
भागते फिरते
गली-गली,
खुद ही हँसते
पानी उछाल
संग ले चलते
मित्र को भी
भीग कर के
वापस आते
माँ का काम
बढ़ाकर
खुद बिस्तर मे
घुस जाते
अब कहाँ
वो बेफ़िक्री सी
बन्द घरों से
बाहर झाँक
मन मसोस कर
रह जाते
डॉ निशा वाधवा