अंतरद्वंद
जीवन में हमारे साथ,कितने रिश्ते,
कितने लोग होते है ,
जिनको हम अपना ,कहते है
फ़िर भी हमारे अंतरद्वंद्व के संघर्ष मे,
हम अकेले ही होते है ,
क्युकी इस “अंतरद्वंद्” को
ना ही किसी को समझाया जा सकता है,
और न ही कोई इसको समझ सकता है।
जीवन में हमारे साथ,कितने रिश्ते,
कितने लोग होते है ,
जिनको हम अपना ,कहते है
फ़िर भी हमारे अंतरद्वंद्व के संघर्ष मे,
हम अकेले ही होते है ,
क्युकी इस “अंतरद्वंद्” को
ना ही किसी को समझाया जा सकता है,
और न ही कोई इसको समझ सकता है।