अंकपत्र सा जीवन
गीत
अंकपत्र सा है यह जीवन
अंक सभी तो तोल रहे हैं
यहीं कमाया यहीं गंवाया
कोष सभी के बोल रहे हैं।
कॉपी में जीरो जब आया
ठिठका माथा, मन घबराया
अम्मा का था दूध बताशा
फिर क्या था, तू देख तमाशा
बनें यहीं जीरो से हीरो
पर अब कुछ भी याद नहीं है
जयति जयति बोल रहे हैं।।
अंकों की सब माया जननी
धन दौलत वो और चवन्नी
दो आने के दही बड़े थे
हलवा पूरी सभी पड़े थे
अब कार्ड में जीवन सारा
क्रेडिट क्रेडिट खोल रहे हैं।
अंक सभी अंकों से रूठा
घर का खाना, रूखा रूखा
इनकम सबकी बड़ी बड़ी है
फिर भी मुश्किल आन पड़ी है
आओ अपनी उम्र लगाएँ
थोड़ा तो हिसाब लगाएँ
रहा पहाड़ा सौ का जीवन
सब अपने में डोल रहे हैं।।
सूर्यकांत द्विवेदी