अँधियारे में कौन हँस रहा।
रंगमंच पर नाट्य चल रहा,
लंकपति सीता को हर रहा,
तब नेपथ्य से आता एक ठहाका सीय पर तंज कस रहा।
अँधियारे में कौन हँस रहा।
अँधियारे में कौन हँस रहा।
कर में दुस्शासन के चीर है,
द्रुपद सुता होती अधीर है,
सभा सन्न और मौन खड़ी है किसके भीतर पाप बस रहा।
अँधियारे में कौन हँस रहा।
अँधियारे में कौन हँस रहा।
इंद्र के हृदय विकार पल रहा,
जब वो अहिल्या सत्व छल रहा,
उस रजनी में देख उन्हें,है कौन काम कीचड़ में धँस रहा।
अँधियारे में कौन हँस रहा।
अँधियारे में कौन हँस रहा।