÷ आत्मनिर्भरता ÷
सर्द रात में
वह ‘ फटेहाल भिखारी ‘
चादर के नाम पर
टाट को लपेटे हुए
एक फुटपाथ पर करवटें बदल रहा है ,
शायद किसी अतीत और भविष्य के
सुखद स्वप्नों में डूबा है ,
क्योंकि अभी कल की ही बात है
जब वह
फुटपाथों पर घूम रहा था ,
अपनी भूख मिटाने के लिए
झूठे पत्तलों को चाट रहा था ,
तब सुना था –
कोई साहब अखबार पढ़ते हुए
बड़बड़ा रहे थे
प्रधान मंत्री ने कहा है –
हम ‘ आत्मनिर्भर ‘ हो गये हैं
अनाज के मामलों में ,
तकनीकी मामलों में ।
यह सुनते ही मारे खुशी के
उसकी भूख मिट चुकी थी
और सोचने लगा था
शायद बात एकदम सही है
तभी तो ये लोग
इतने साधन – सम्पन्न हो गये हैं ,
कोई भी चीज जब हासिल होती है
उसका फल पहले बड़े लोग ही पाते हैं ।
अनादि काल से ऐसा चला आ रहा है ।
‘ समुंद्र मंथन ‘ में भी तो ऐसा ही हुआ था ।
एक दिन मेरी भी बारी जरुर आएगी
अगर जीवित रहा ,
नही तो हमारी आने वाली पीढ़ियां
जरूर सुख भोगेंगी ,
क्योंकि
हम ‘ आत्मनिर्भर ‘ हो गये हैं ।
~ ~ ~ ईश्वर दयाल जायसवाल ;
टांडा-अंबेडकर नगर ( उ.प्र. ) ।