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29 Apr 2022 · 1 min read

🍀🌺परमात्मा सर्वोपरि🌺🍀

ज्ञानम् अटल:।ज्ञानस्य अन्तर्गत उत्पत्ति-स्थिति:-प्रलय: भवन्ति,परं ज्ञाने कः चित् अन्तर: स्थापित: न भवति।एतस्य यथास्थिति: भवति।अन्तःकरण शुद्ध: स्यात् अशुद्ध: वा ज्ञाने कः चित् अपि अवरुद्ध: न भवति।अन्तःकरण प्रकृत्या: कार्य:,तत्व प्रकृत्या अतीतः।अन्तः करण शुद्ध भवने क्रिया शुध्द भविष्यति, तत्वज्ञान केन प्रकारेण भविष्यति?ज्ञानम् अपार: असीम:।प्रकृति अपि एतस्य तुलनायां बृहद लघु।
परमात्मा सर्वोपरि:।एतं ज्ञानं-प्राप्ति: पश्चात् संसारे केचित् कार्य: कुर्वन्-ज्ञानं-पानं वंचित; न भवति।एतस्य तत्वस्य प्राप्तया: सर्वे अधिकारी सन्ति,कः अपि अनधिकारी अयोग्य: निर्बलं असमर्थ: न।परं के अपि ज्ञातुं इच्छन्ति तु एतस्य अपेक्षायां के चित् सुकर: न।परं ज्ञातुं न इच्छन्ति-एषः बहुव: आश्चर्यस्य वार्ता:।एतस्य प्राप्ति: हेतु केवलं दृढ़इच्छया: आवश्यकता,योग्यतायाः आवश्यकता न।सः सर्वोपरि, अतः एतस्य आसक्ति: अपि सर्वोपरि भवेत्।
जड़स्य अपेक्षा सजीव: मुख्य:।एतस्मिन् अपि स्थावरस्य अपेक्षा जंगम: मुख्य:।जंगमे गौ: मुख्य:।तेन अपि मनुष्य: मुख्य:।मनुष्ये विवेक: मुख्य:।महिमा मनुष्यशरीरस्य न भवति, प्रत्युत् विवेकस्य।विवेकेन अपि सत् तत्व श्रेष्ठ:।विवेक: अनादि:,कर्माणाम फलं न अस्ति।विवेकं भगवन्तः ददाति।विवेक: दानं एव भगवत: विलक्षणं कृपा।विवेकस्य अपेक्षा अपि विवेकस्य सदुपयोग: मुख्य:।विवेकस्य सदुपयोग: करोति तु सर्वा: परिस्थितय: कल्याणकारकः भविष्यन्ति।सः विवेक: एव तत्वज्ञानं परिणतः भविष्यति।येन अधुना च परिणामे च अस्माकं च अन्यजनानां च जीवानां च हित: भवति, एषः कृत्य विवेकस्य सदुपयोग:

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
1 Like · 191 Views
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