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8 Sep 2024 · 1 min read

✍️ नशे में फंसी है ये दुनियां ✍️

🌹गज़ल 🌹

मापनी: १२२ १२२ १२२, १२२ १२२ १२२

✍️ नशे में फंसी है ये दुनियां ✍️

नशे में फंसी है ये दुनियां,
कहां जा बसी है ये दुनियां।

दिया है जन्म जो उसी पर,
हँसी जा रही है ये दुनियां।

हमारे किए दोस्ती को,
भुली जा रही है ये दुनियां।

स्वारथ गले से लगाकर,
छली जा रही है ये दुनियां।

गमों ज़ख्म अपनों को देते,
चली जा रही है ये दुनियां।

बिकी जा रही है ये मदिरा,
पिए जा रही है ये दुनियां।

किसी पर किसी की नशा से,
गिरी जा रही है ये दुनियां।

जो करते मोहब्बत उन्हीं पर,
सितम ढा रही है ये दुनियां।

मोहब्बत किया हमने नफ़रत,
किए जा रही है ये दुनियां।

बचाया है धन जो कमाकर,
लुटी जा रही है ये दुनियां।

हिफ़ाज़त हमारी निकम्मा,
करी जा रही है ये दुनियां।

दलाली जहन्नुम के दलदल,
धंसी जा रही है ये दुनियां।

बुनीं जाल मकड़ी है उसमें,
मरी जा रही है ये दुनियां।

लिए आग नफ़रत में “रागी”
जली जा रही है ये दुनियां।

🙏 गज़ल लेखक 🙏

राधेश्याम “रागी”
कुशीनगर उत्तर प्रदेश
सम्पर्क सूत्र :
+ ९१ ९४५०९८४९४१

Language: Hindi
40 Views
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