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28 Nov 2022 · 1 min read

✍️यादों के पलाश में ..

मुद्दते गुजरी है मुझे मेरी ही तलाश में
मैं कही जिंदा तो नही हूँ मेरी लाश में?

जेहन में तो सवालो पर सवाल खड़े है
यूँ जवाब लड़खड़ा रहे है कश्मकश में..

ये बसंत की धुप तरसती है बूँदो के लिए
वो सावन मुरझा गया यादों के पलाश में

हर मुश्किल में वो ढूंढते रहे बस खुदा को
हम एक कतरा इंसानियत की ख्वाईश में

नींद ग़मज़दा है आँखों के बहते दरिया से
कोई चेहरा कैसे पढ़े हम भीगे थे बारिश में
…………………………………………………………//
©✍️’अशांत’ शेखर
27/11/2022

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