✍️मुझे कातिब बनाया✍️

✍️मुझे कातिब बनाया✍️
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हमने तेज आँधियों में
जलने की तरकीब सिखी है।
हजारों बुझे चरागो को रोशन
करने की करतब सिखी है।
आँगन में,मेरे आफ़ताब ना सही
अँधेरो से गुफ़्तगू ज़नाब सिखी है।
मेंरे दर्द ने मुझे कातिब बनाया
मैंने सिर्फ चार किताब सिखी है ।
उसे कुछ जुस्तजू दिल में रही होगी
हमने प्यार की जुबाँ अदब सिखी है।
वो छुपाती भी कैसे चेहरे की मायूसी
हमने तो नूर-ए-बसर अजीब सिखी है ।
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✍️”अशांत”शेखर✍️