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12 Jan 2023 · 4 min read

■ सियासत

■ मुहब्बत की दुकान, नफ़रत के सामान
★ सेल्फ़ गोल कांग्रेस की बीमारी
【प्रणय प्रभात】
आज की बात प्रसंगवश एक लतीफ़े से शुरू करता हूँ। जो बेहद प्रचलित रहा है। आपने भी शायद सुना होगा। जो नहीं सुन पाए उनके लिए पेश करता हूँ-
“एक महिला अपनी पड़ोसन से दूसरी पड़ोसन के ऐबों की निंदा करते हुए कह रही थी कि एक सुनीता है। जो अपनी सास को चाहे जब बुरा-भला कहती है। उसे कोसती है, जबकि मुझे देखो। मेरी सास भारी कम्बख्त, नाकारा, धूर्त, बेशर्म, कलमुंही, आलसी, बेहूदी, और मक़्क़ार है। लेकिन मज़ाल है कि मैं उसके बारे में एक भी शब्द किसी के सामने ग़लत बोल दूं।” मुंह ताकती पड़ोसन इतना सुनने के बाद यह पूछने की हिम्मत भी नहीं संजो पाई कि इतना सब कह डालने के बाद और बचा क्या है कहने को…?”
यह लतीफ़ा सौ फ़ीसदी सटीक साबित हो रहा है कांग्रेस पार्टी की आख़िरी आस राहुल गांधी पर। जो “नफ़रतों के मोहल्ले में मुहब्बत की दुकान” खोलने का हल्ला मचाने के बाद भी नफ़रती बोलों से बाज़ नहीं आ पा रहे हैं। उन्हीं बोलों से हो बेतुके, हास्यस्पद और विवादित सिद्ध हो रहे हैं। कथित “भारत जोड़ो पदयात्रा” के दौरान भी राहुल गांधी उन बचकानी बातों से परहेज़ नहीं कर पा रहे हैं, जो उनके अपने क़द को छोटा करने वाली साबित होती रही हैं। अपनी और अपने दल की किरकिरी कराने के आदी राहुल गांधी जहां अपनी ख़ुद की छवि को ख़ुद बिगाड़ने की मुहीम छेड़े हुए हैं बल्कि पलटवार और मख़ौल में माहिर भाजपा को देश की जनता के सामने पीड़ित व आक्रामक होने का मनचाहा मौका आए दिन दे रहे हैं।
धर्म, आध्यात्म और संस्कृति की जानकारी के मामले में अनाड़ी प्रतीत होते राहुल गांधी को नए-नए डायलॉग और टास्क कौन देता है, वही जानें। मगर सच यह है कि कोई तो है जो सदी के सबसे बड़े बतोलेबाज़ नवजोत सिद्धू द्वारा किए गए नामकरण को सही साबित करने की सुपारी लिए बैठा है। जो बेनागा ऊटपटांग बातें उनके मुंह से निकलवा रहा है। ऐसी बातें जो मैच के निर्णायक पलों में संभलती नज़र आने वाली कांग्रेस के लिए सेल्फ़ गोल सिद्ध हो रही हैं। अच्छा-ख़ासा खेलते-खेलते “हिट-विकेट” होने के शौक़ीन कांग्रेस के युवराज को पता नहीं कब समझ आएगा कि उनके बिगड़े बोल 135 साल पुरानी पार्टी के ताबूत में कील साबित हो रहे हैं।
पचपन की ओर अग्रसर होते हुए भी बचपन से नहीं उबर पा रहे अधेड़ युवा राहुल राजनेता के बजाय एक विदूषक की भूमिका निभा रहे हैं। जिनके बोल-वचन भाजपा के लिए हमेशा से प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स साबित होते आ रहे हैं। अधिकांश भाजपाइयों के प्लेटलेट्स और हीमोग्लोबिन में इज़ाफ़ा करने वाले राहुल गांधी को शायद पता नहीं कि उनके खेल को कोई और नहीं, वे ख़ुद बिगाड़ते आ रहे हैं। मुहब्बत के दावे करने के साथ कटुता बढाने वाली बातें करने वाले राहुल गांधी की पदयात्रा को मिलते समर्थन व सहानुभूति से पूरी तरह चिंतित और विचलित भाजपा को बिकेट दिखाकर हवाई शॉट मारने की झोंक में लगातार आउट होने के बाद भी किसी की हिम्मत नहीं कि राहुल गांधी को संजीदगी का सबक़ पढ़ाएं।
हैरत की बात यह है कि दो हज़ार किमी से अधिक पैदल चलने और लाखों लोगों के साथ आने के बाद भी राहुल गांधी को अपने मिशन की महत्ता समझ में नहीं आई है। आई होती तो वो एक सकारात्मक सोच और सदाशयता को साथ लेकर आगे बढ़ रहे होते। विडम्बना की बात है कि वो कथित आंच को बुझाने के लिए पानी की जगह पेट्रोल की धारा का सहारा ले रहे हैं। जो उन्हें उत्साही व ऊर्जापूर्ण के बजाय अपरिपक्व सिद्ध करने का कारण बन रहा है। जहां तक पदयात्रा का सवाल है, कोई दो राय नहीं कि उसने सुलगते हालात में एक माहौल बनाने का काम किसी हद तक किया है। इसका प्रमाण है भाजपा के हमले, जो कभी महामारी, कभी टी-शर्ट, कभी पूजा-अर्चना तो कभी अन्य मुद्दों के नाम पर किए जा रहे हैं। ऐसे में बेहतर होता यदि राहुल गांधी कुछ समय के लिए परिपक्वता व गंभीरता का परिचय देते। यह और बात है कि उन्होंने एक नई राह तलाशने के बाद भी पुराना ढर्रा नहीं छोड़ा। कभी करोड़ों युवाओं को रोज़गार देकर देश के आर्थिक विकास में भागीदार औद्योगिक घरानों को पानी पी-पी कर कोसना, कभी आरएसएस जैसे संगठन पर सवाल उठाना, कभी महापुरुषों के प्रति पूर्वाग्रहों सोच से टिप्पणी करना राहुल ही नहीं कांग्रेस की बीमारी है। जो उसे लगातार खोखला करने का काम कर रही है। मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, जयराम रमेश, राशिद अल्वी, अधीर रंजन चौधरी, मल्लिकार्जुन खड़गे, मनीष तिवारी जैसे नेताओं की अनर्गल टिप्पणियों का लगातार खामियाज़ा भुगतने के बाद भी कांग्रेस में सुधार न आना भाजपा के लिए यक़ीनन एक प्लस-पॉइंट है। यह बात ज़ुबानी भाला-कमान धारण करने वाले कांग्रेस के असली आला-कमान को सबसे पहले समझ मे ज़रूर आनी चाहिए। अन्यथा सत्ता में वापसी तो दूर एक मज़बूत विकल्प के तौर पर वजूद में आ पाना भी पंजा दल के लिए नामुमकिन होगा।
उम्मीद की जानी चाहिए कि कन्याकुमारी से कूच कर कश्मीर की ओर अग्रसर राहुल गांधी के मिज़ाज में ठंडक आएगी। वे दूसरों का पोस्टर फाड़ने या पराई लक़ीर को छोटा करने जैसी बेजा कोशिशों से तौबा करेंगे। पार्टी के बाक़ी नेताओं को भी बयान के नाम पर बवाल का जनक बनने से रोकेंगे। सिर्फ़ आशा लगाई जा सकती है कि वे अल्प या अर्द्ध ज्ञान के बलबूते धर्म, संस्कृति और इतिहास पर नीली-हरी-लाल-पीली रोशनी डालने से बचेंगे। संगठन को भी कड़े निर्णय लेते हुए उन नेताओं पर सख्ती से रोक लगानी होगी, जो चापलूसी के चक्कर में आपत्तिजनक उपमा व तुलना की होड़ में शामिल हैं। भाजपाई उकसावों से बच पाने में कामयाबी ही कांग्रेस की भावी सफलता तय कर सकेगी। अब यह निर्णय कांग्रेस और उसके झंडाबरदारों को लेना होगा कि वे ख़ुद को ख़ुद सुधारना पसंद करेंगे या फिर जनता के हाथों? बही जनता जो भाजपा के “इंद्रजाल” और “मायाजाल” की गिरफ्त में है और आसानी से मुक्त होने वाली नहीं।

Language: Hindi
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