Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jan 2023 · 3 min read

■ सामयिक / ज्वलंत प्रश्न

#विडम्बना-
■ सियासत का सॉफ्ट-टार्गेर सिर्फ़ सनातिन ही क्यों…?
★ बेशर्म खेल के पीछे की वजह ध्रुवीकरण
★ सियासत, मीडिया व बाहरी शक्ति का त्रिकोण
【प्रणय प्रभात】
किसी की बात को बिना उसके बोले जान लेना चमत्कार है या नहीं? इस बात को लेकर इन दिनों देश भर में विवाद छिड़ा हुआ है। एक तरफ इसे चमत्कार मानने वालों की संख्या लाखों से करोड़ों की ओर बढ़ रही है। वहीं इसे पाखण्ड बताने वाले भी बेनागा सामने आ रहे हैं। धर्म और विज्ञान के बीच की भिड़ंत का दुःखद पहलू सनातन धर्म परम्परा पर हमला है। जिसके पीछे कुत्सित राजनीति पूरा दम-खम दिखा रही है।
विडम्बना की बात यह है कि इस मुद्दे ने जहां सनातनधर्मियों के बीच विभाजन के हालात बना दिए हैं। वहीं दूसरी ओर नास्तिकों और विधर्मियों को सत्य-सनातनी धर्म-संस्कृति के उपहास का अवसर दे दिया है। जबकि सच्चाई यह है कि इस तरह के कारनामे करने वालों की देश में भरमार है। जिनके पोस्टर सार्वजनिक स्थलों तक पर चस्पा दिखाई देते आ रहे हैं। जिसमे किसी भी धर्म के जानकार व तांत्रिक पीछे नहीं हैं।
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा है कि मानला अहिंसक व सहिष्णु समुदाय से जुड़ा है, लिहाजा उस पर आक्रमण का साहस हर कोई दिखा रहा है। इनमें तमाम ईर्ष्या और द्वेष से भरे हुए हैं। जबकि बाक़ी राजनीति से प्रेरित व प्रभावित होकर इस मुद्दे को लपकने और उछालने में भिड़े हुए हैं। इनमें सबसे बड़ी तादाद उन जले-भुने लोगों की है, जिन्हें किसी का देवदूत बनकर सुर्खियों में आना नहीं सुहा रहा है। दूसरे क्रम पर बड़ी संख्या उनकी है जो इस मुद्दे को चुनावी साल में ध्रुवीकरण के नज़रिए से भुनाने में जुटे हुए हैं और आरोप-प्रत्यारोप, तर्क-वितर्क का खेल धड़ल्ले से जारी रखे हुए हैं। आंच को हवा दे कर भड़काने का काम मुद्दाविहीन और निरंकुश इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर रहा है। जिसे किसी धर्म या भावनाओं से ज़्यादा चिंता अपनी टीआरपी की है।
देश, धर्म और मानवता के साथ खिलवाड़ से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को सस्ते में खरीद कर करोड़ों में बेचने वाले मीडिया की मनमानी और बेशर्मी मुद्दे को दावानल बनाने में जुटी हुई है। इस माहौल में सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ उस बहुसंख्यक आस्थावान समुदाय को भोगनी पड़ रही है, जिनकी आस्था को बड़ा ख़तरा विधर्मियों से अधिक अपने बीच पलते, पनपते अधर्मियों से है। जिनके लिए राजनीति स्वधर्म से कहीं ऊपर है। शर्मनाक बात यह है कि इन बखेड़ेबाज़ों मे तमाम छोटे-बड़े धर्मगुरु व धर्माचार्य भी शामिल हैं।
परालौकिक संसार और उसके रहस्यों को नकारने वाले विज्ञान के विरोधी स्वर उसकी स्वाभाविक व नीतिगत मजबूरी समझे जा सकते हैं। समस्या की वजह वे धर्मगुरु और प्रबुद्ध-जन हैं, जो तंत्र-साधना व सिद्धियों के पीछे का सच जानने के बाद भी मामले को तूल दे रहे हैं। इन सबके पीछे सेवा और समर्पण के नाम पर धर्मांतरण का खेल दशकों से खेल रही विदेशी शक्तियों की दौलत भी बड़ी वजह हो सकती है। जिसके लिए अपना दीन-ईमान बेचने पर आमादा लोगों की एक संगठित जमात जेबी संस्थाओं के रूप में सक्रिय बनी हुई है। जिसकी ताक़त केवल सनातन धर्म-संस्कृति पर ही हावी होती है। फिर चाहे वो सियासी खिलाड़ी हों या वाममार्गी लेखक और विचारक। बॉलीवुड की कथित प्रगतिशील हस्तियां हों या टुकड़े-टुकड़े गैंग के गुर्गे और बिकाऊ मीडिया-हाउस।
सारा मकड़जाल सिर्फ़ सनातनी सभ्यता के विरोध में बुना जा रहा है। इन सब पर नियंत्रण के लिए ज़िम्मेदार तंत्र की चुप्पी अपने पक्ष में बनने वाले ध्रुवीकरण की देन हो सकती है। जिसके बलबूते इस साल सत्ता के सेमीफाइनल के बाद अगले साल फाइनल खेला जाना है। कुल मिला कर न कोई दूध का धुला है न आस्था से खिलवाड़ का प्रखर व मुखर विरोधी। ऐसे में आस्था का पिसना स्वाभाविक है, जो लगातार पिस रही है।
चुनावी साल के साथ बेहूदगी के इस घटिया खेल का अंजाम किस मुकाम पर पहुंच कर होता है, वक़्त बताएगा। फ़िलहाल यह तय माना जाना चाहिए कि सियासी हमाम के सभी नंगे कम से कम डेढ़ साल बेशर्मी का यह दंगल जारी रखेंगे। जिनके निशाने पर सबसे आगे सनातन और सनातनी होंगे। जो सबके लिए “सॉफ्ट टारगेट” माने जाते रहे हैं। वो भी दुनिया मे इकलौते अपने ही उस देश मे, जो तमाम धर्मों, मतों और पंथों का गुलदस्ता रहा है। संक्रमण के कुचक्र की चपेट में आए साल को अमृत-काल माना जाए या विष-वमन और विष-पान काल? आप स्वयं तय करें, क्योंकि रोटियां किसी की भी सिकें, आग की जद में सब हैं। उसी आग की जद में जो हवा के कंधों पर सवारी करती है और हवा के साथ ही अपना रुख़ भी बदलती है।

1 Like · 46 Views
You may also like:
अभी उम्मीद की खिड़की खुलेगी..
अभी उम्मीद की खिड़की खुलेगी..
Ranjana Verma
2247.
2247.
Khedu Bharti "Satyesh"
Saso ke dayre khuch is kadar simat kr rah gye
Saso ke dayre khuch is kadar simat kr rah gye
Sakshi Tripathi
किस से पूछूं?
किस से पूछूं?
Surinder blackpen
यथार्थ से दूर
यथार्थ से दूर "सेवटा की गाथा"
Er.Navaneet R Shandily
पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य] अध्याय ४
पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य] अध्याय ४ "विदेशों में पुनर्जन्म की...
Pravesh Shinde
💐💐यहाँ से अब सफ़र .........💐💐
💐💐यहाँ से अब सफ़र .........💐💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मत भूलो देशवासियों.!
मत भूलो देशवासियों.!
Prabhudayal Raniwal
जाड़ों की यह नानी (बाल कविता )
जाड़ों की यह नानी (बाल कविता )
Ravi Prakash
कविता के हर शब्द का, होता है कुछ सार
कविता के हर शब्द का, होता है कुछ सार
Dr Archana Gupta
Writing Challenge- घर (Home)
Writing Challenge- घर (Home)
Sahityapedia
【30】*!* गैया मैया कृष्ण कन्हैया *!*
【30】*!* गैया मैया कृष्ण कन्हैया *!*
Arise DGRJ (Khaimsingh Saini)
राम
राम
umesh mehra
मन के ब्यथा जिनगी से
मन के ब्यथा जिनगी से
Ram Babu Mandal
एक अलग सी दीवाली
एक अलग सी दीवाली
Rashmi Sanjay
🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🍀🌺🍀🌺🍀
🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🍀🌺🍀🌺🍀
subhash Rahat Barelvi
🙏देवी चंद्रघंटा🙏
🙏देवी चंद्रघंटा🙏
पंकज कुमार कर्ण
कुछ समझ लिया कीजै
कुछ समझ लिया कीजै
Dr. Sunita Singh
“ अपने जन्म दिनों पर मौन प्रतिक्रिया ?..फिर अरण्यरोदन क्यों ?”
“ अपने जन्म दिनों पर मौन प्रतिक्रिया ?..फिर अरण्यरोदन क्यों...
DrLakshman Jha Parimal
मजबूरी
मजबूरी
पीयूष धामी
दूर....
दूर....
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
अपनी अना का
अपनी अना का
Dr fauzia Naseem shad
कोरे कागज़ पर लिखें अक्षर,
कोरे कागज़ पर लिखें अक्षर,
अनिल अहिरवार"अबीर"
शब्दों के अर्थ
शब्दों के अर्थ
सूर्यकांत द्विवेदी
मुझको कभी भी आज़मा कर देख लेना
मुझको कभी भी आज़मा कर देख लेना
Ram Krishan Rastogi
बहुत ही महंगा है ये शौक ज़िंदगी के लिए।
बहुत ही महंगा है ये शौक ज़िंदगी के लिए।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मरहम नहीं बस दुआ दे दो ।
मरहम नहीं बस दुआ दे दो ।
Buddha Prakash
अल्फाज़ ए ताज भाग -10
अल्फाज़ ए ताज भाग -10
Taj Mohammad
Ham tum aur waqt jab teeno qismat se mil gye.....
Ham tum aur waqt jab teeno qismat se mil gye.....
shabina. Naaz
सदियों का छल
सदियों का छल
Shekhar Chandra Mitra
Loading...