ख़बर थी अब ख़बर भी नहीं है यहां किसी को,
फर्क़ क्या पढ़ेगा अगर हम ही नहीं होगे तुमारी महफिल में
गणेश जी पर केंद्रित विशेष दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
इसीलिए तो हम, यहाँ के आदिवासी हैं
कण-कण में तुम बसे हुए हो, दशरथनंदन राम (गीत)
23/179.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
*आस टूट गयी और दिल बिखर गया*
*ख़ुद मझधार में होकर भी...*
जो कभी था अहम, वो अदब अब कहाँ है,
The engulfing darkness and the silence stretched too long,
आजादी (स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)
*"देश की आत्मा है हिंदी"*