गांवों के इन घरों को खोकर क्या पाया हमने,
Panna mai zindgi ka agar fir se palatu
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
मैंने देखा है मेरी मां को रात भर रोते ।
रावण बनना भी कहाँ आसान....
आज फिर मुझे गुजरा ज़माना याद आ गया
ग़ज़ल _ मुहब्बत के दुश्मन मचलते ही रहते ।
में तेरी हर बात और जिद्द मान लूंगा अपने झगड़ते में
आज सारे शब्द मेरे खामोश मन में विचार ही नहीं उमड़ते।