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3 Dec 2022 · 1 min read

■ दैनिक लेखन स्पर्द्धा के अन्तर्गय

पिता मेरे लिए…..!!
(प्रभात प्रणय)

मैं अपने पिता को याद नहीं करता
कभी नहीं, कभी भी नहीं।
और क्यों करूं याद?
याद भी उन्हें, जिन्हें कभी भूला ही नहीं,
जो शिलालेख पर अंकित वाक्य की तरह,
कालजयी हैं मेरे मानस-पटल पर।
कौन कहता है कि वो नहीं हैं
मैं कहता हूं कि वो आज भी यहीं हैं,
मेरे कर्म में, मेरे धर्म में,
मेरे जहन में, मेरे मर्म में।
मेरे आचार-विचार-व्यवहार में,
मेरी हरेक जीत में और हार में।
यहां तक कि मेरी सभ्यता और संस्कार में।
मुझे महसूस होता है पल-पल पिता के साथ का,
मेरा शीश सतत स्पर्श पाता है पिता के हाथ का।
मेरे लिए पितृ-दिवस कोई एक दिनी त्यौहार नहीं,
मेरे लिए हर दिन पितृ-दिवस है
क्योंकि मेरे अंदर मेरे पिता आज भी हैं
जो जीवित रहेंगे मेरे जीवन तक
और उसके बाद मेरे सूक्ष्म स्वरूप में
पहुंच जाऐंगे अपने वंश की अगली पीढ़ी में।
सिर्फ इसलिए कि मैने अपने में अपने पिता को जिया है,
आखिर मेरे पास जो भी है उन्हीं से तो लिया है।।
संक्षिप्त में कहूँ तो बस यही कह सकूँगा :-
“यहाँ पर भाव सरिता, शब्द सागर सब पड़ेंगे कम।
पिता आकाश है आकाश पर कितना लिखेंगे हम?’
【अपने जीवनदाता, अपने मार्गदर्शी, अपने प्रेरणास्त्रोत अपने पापा को उनके बेटे की ओर से समर्पित भावाभिव्यक्ति】

1 Like · 238 Views
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