Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Jan 2023 · 5 min read

■ चुनावी साल, चाहे नई चाल

#2023_में
■ अब मध्यप्रदेश भी मांगे “गुजरात मॉडल”
★ भाजपा को करने होंगे बड़े बदलाव
★ वरना फिर संभव है 2018 जैसे हाल
【प्रणय प्रभात】
प्रख्यात समाजवादी विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कभी कहा था कि- “ज़िंदा क़ौमे पांच साल इंतज़ार नहीं करतीं। वो सरकार के ग़लत क़दम का फ़ौरन विरोध करती हैं।” मौजूदा दौर और बदले हालात में भी यह विचार कतई अप्रासंगिक नहीं है। बशर्ते इसमें देश काल और वातावरण के लिहाज से मामूली बदलाव कर दिया जाए। जो कुछ इस तरह भी हो सकता है- “आपदा और महामारी के दौर में जिंदा लोग अगली बार का इंतज़ार नहीं करते। वो हाईकमान के हित-विरुद्ध निर्णय के ख़िलाफ़ बग़ावत या भितरघात की राह पकड़ लेते हैं।”
भारतीय राजनीति में यह बात अब तक बारह आना सटीक साबित होती आ रही है। जिसके साल 2023 में सौलह आना सही साबित होने के प्रबल आसार हैं। जिसकी मिसालें मध्यप्रदेश में कुछ समय पहले सम्पन्न नगरीय निकाय चुनावों ने पेश कर दी हैं। यही सब नज़ारे इस बार के विधानसभा चुनाव में भी उभरने तय हैं। संकेतों को बल उन राज्यों से भी मिल रहा है, जहां बाग़ी और दाग़ी न केवल पार्टी नेतृत्व के फ़ैसले के ख़िलाफ़ ताल ठोक कर खड़े हुए हैं, बल्कि घर-वापसी में भी क़ामयाब रहे हैं। मध्यप्रदेश इस मामले में पहले से एक क़दम आगे है। जहां जनता द्वारा नकारे गए चेहरे संगठन और सरकार द्वारा पदों से नवाज़ जा चुके हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में “बग़ावत का बथुआ” बिना खाद-पानी लहलहा उठे तो अचरज नहीं होना चाहिए।
सियासी दंगल के नियमों में मनमानी तब्दीली से बख़ूबी वाकिफ़ दल आसानी से आम जनता की मुराद को पूरा कर सकते हैं। जो घिसे-पिटे चेहरों में समयोचित बदलाव से जुड़ी है। ख़ास कर उन चेहरों को लेकर, जो किसी निर्वाचन क्षेत्र को अपनी जागीर मानते आ रहे हैं। ऊपरी नूराकुश्ती और अंदरूनी गलबहियों में माहिर तमाम चेहरों से आम जनता अब ऊब चुकी है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि मध्यप्रदेश को भी अब “गुजरात मॉडल” की दरकार है और भाजपा को इस फार्मूले पर अमल करना ही होगा। जो पिछले विधानसभा चुनाव के जनादेश को भूली नहीं होगी। भले ही कांग्रेस के कथित आंतरिक लोकतंत्र ने उसके भाग्य से सत्ता का छींका 15 महीने बाद ही तोड़ दिया हो। ऐसे में “काठ की अधजली हंडिया” को एक बार फिर जनमत के चूल्हे पर चढ़ाना सत्तारूढ़ दल के लिए कम जोख़िम भरा प्रयास नहीं होगा। ऐसे में सियासी जानकार मानते हैं कि भविष्य के त्रिकोणीय दंगल से पहले भाजपा गुजरात की तर्ज पर चौंकाने वाले निर्णय ले सकती है।
जहां तक केंद्रीय नेतृत्व का सवाल है, उसे देश के हृदय-प्रदेश की ज़मीनी हक़ीक़त का भली-भांति अंदाज़ा है। जहां की आंचलिक व क्षेत्रीय जागीरों का सियासी परिसीमन 2020 में हो चुका है। लगभग 3 साल पहले कांग्रेस के बाड़े के पेड़ों से भाजपा के खेत मे टपके बीज भरपूर सिंचाई के बाद दरख़्त का रूप ले चुके हैं। जिनकी शाखें पहले से खड़े वृक्षों की डालियों को अपने चंगुल में जकड़ कर अपनी पकड़ का अहसास करा भी चुकी हैं। “घर का पूत कंवारा डोले, पाड़ोसी का फेरा” वाली उक्ति को मजबूरी में साकार करने वाली भाजपा अगले मोर्चे पर भी विवश नज़र आएगी, ऐसा लगता नहीं है। यही वजह है कि उससे ”गुजरात फार्मूले” पर अमल की उम्मीद लगाई जा रही है। उसी फार्मूले की, जो गुजरात में 27 साल से सत्ता के सिंहासन पर जमी भाजपा को महज चंद रोज़ पहले प्रचंड जीत का तोहफ़ा दे चुका है।
वैसे भी आगामी चुनाव में मध्यप्रदेश की सरज़मीन का ट्राई-जंक्शन बनना तय है। जहां से
आगे का सफ़र डबल इंजन वाली सरकार के लिए बहुत आसान नहीं है। वो भी उन हालातों में जहां एक इंजन की ड्रायविंग सीट पर बैठने की जंग अंदरखाने जारी हो। चूंकि 2023 की अंतिम तिहाई (अक्टूबर से दिसम्बर) में संभावित चुनाव को 2024 के आम चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर मान्य किया जा रहा है। लिहाजा यह क़यास लगने लगे हैं कि भाजपा इस बार के चुनाव में किसी एक क्षत्रप की राज़ी-नाराज़ी की बहुत अधिक परवाह करने वाली नहीं है। चुनाव बाद जनमत के आंकड़ों के समीकरण को येन-केन-प्रकारेण हल करने और प्रतिकूल नतीजों को अनुकूल बनाने में माहिर हो चुकी भाजपा अगले चार-छह महीनों में बड़े बदलाव कर जनता का विश्वास पुनर्जागृत करने का प्रयास कर सकती है। जो फ़िलहाल मरणासन्न सा दिखाई दे रहा है तथा 2018 का इतिहास दोहरा सकता है। जनमानस में सुलगती आग के धुएं की गंध भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को हर दिन नहीं पल-पल पर मिल रही है। जो उसके ख़बरी तंत्र की बारहमासी मुस्तैदी की ख़ासियत है।
हर समय “इलेक्शन मोड” में रहने वाला भाजपा संगठन हिंदी बेल्ट के बड़े व अहम सूबे के हालात अच्छे से समझ रहा है। जो गुजरात की बड़ी जीत के बावजूद हिमाचल की टीस को ज़हन में रखे हुए है। महाराष्ट्र और बिहार की सल्तनत जीतने के बाद गंवाने के दर्द से दो-चार हो चुकी भाजपा ने अब रक्षात्मक के बजाय आक्रामक खेल अपना लिया है और इसकी बानगी 2023 के चुनावों में मिलनी तय है। वैसे भी भोपाल के तख़्ते-ताऊस की लीज़ को चुनौती देने वालों के सब्र का बांध अब ढहने की कगार पर है। सत्ता और संगठन में “बिग बॉस” की मंशा के सम्मान में बड़े मोर्चो पर बरसों खपा चुके सूबे के सियासी सूरमा उम्र के चौथेपन से पहले वतन-वापसी और सम्मान के स्वाभाविक तलबगार हैं। जिन्हें हक़दार न मानने की भूल भाजपा इस बार भूले से भी नहीं करना चाहेगी। जिसकी सबसे बड़ी वजह 2024 के लोकसभा चुनाव होंगे।
विपक्ष की हैसियत व अपनो की अहमियत का जोड़-बाक़ी-गुणा-भाग चौबीसों घण्टे लगाने वाली भाजपा एक को साधने के चक्कर मे घनचक्कर बनेगी, इसके आसार इस बार नहीं के बराबर हैं। उसे जनता के दरबार मे हाज़िरी लगाने को तैयार अपने विकल्पों के प्रयासों का भी पूरा इल्म है। लिहाजा उसे भी जनता की अदालत में नए विकल्प रखने होंगे। ऊपरी तौर पर वंशवाद, सामंतवाद और जातिवाद की ख़िलाफ़त करने वाली भाजपा ने बीते कुछ सालों में बहुत हद तक नीतिगत बदलाव किए हैं। जिसने उसे सबसे बड़े प्रांत उत्तरप्रदेश सहित डेढ़ दर्ज़न से अधिक सूबों में सत्ता-सुख दिलाया है। ऐसे में बड़े और कड़े फ़ैसलों में पारंगत भाजपा सूबाई सियासत में रियासत की विरासत क़ायम करने के लिए रियाया की भावनाओं का आंकलन कर सकती है। जो सुयोग्य युवाओं व महिलाओं को तरज़ीह दिला सकता है।
नहीं लगता कि हवा के रुख़ और वक़्त की आहट को भांपने में अव्वल भाजपा 2018 की भूल को दोहराएगी तथा कांग्रेस को पलटवार और आम आदमी पार्टी को अपने जनाधार में सेंधमारी का आसान मौका देगी। हिमाचल में अच्छे-ख़ासे मत-प्रतिशत के बावजूद रिवाज़ बदल पाने में नाकाम भाजपा आम जन से जुड़े मुद्दों और चेहरों को नज़रअंदाज़ करने की चूक भी शायद ही करे। ऐसे में संभावना है कि नए साल में अधिकांश मोर्चो पर बेहाल व बदहाल मध्यप्रदेश को “गुजरात मॉडल” के तहत अपेक्षित फेर-बदल की वो सौगात मिल जाए, जो अब बेहद लाजमी हो चुकी है। आम जनहित में आमूल-चूल बदलाव के बाद उपजने वाले हालातों का भय वैसे भी उस दल को सूट नहीं करेगा, जिसने समूचे देश की राजनीति को ”घर-वापसी’ और “शुद्धिकरण” जैसे महामंत्र दिए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि कड़ाके की ठंड से शुरू हुए चुनावी साल की सियासी सरगर्मी आने वाले दिनों में कौन सी रंगत पाती है?

Language: Hindi
1 Like · 38 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हिचकी
हिचकी
Bodhisatva kastooriya
रात सुरमई ढूंढे तुझे
रात सुरमई ढूंढे तुझे
Rashmi Ratn
दामन
दामन
Dr. Rajiv
Khud ke khalish ko bharne ka
Khud ke khalish ko bharne ka
Sakshi Tripathi
जिंदगी के कोरे कागज पर कलम की नोक ज्यादा तेज है...
जिंदगी के कोरे कागज पर कलम की नोक ज्यादा तेज है...
कवि दीपक बवेजा
ख़ुशी मिले कि मिले ग़म मुझे मलाल नहीं
ख़ुशी मिले कि मिले ग़म मुझे मलाल नहीं
Anis Shah
शौक़ इनका भी
शौक़ इनका भी
Dr fauzia Naseem shad
सामाजिक क्रांति
सामाजिक क्रांति
Shekhar Chandra Mitra
सरेआम जब कभी मसअलों की बात आई
सरेआम जब कभी मसअलों की बात आई
Maroof aalam
■ आज की सलाह...
■ आज की सलाह...
*Author प्रणय प्रभात*
एक दिन देखना तुम
एक दिन देखना तुम
gurudeenverma198
महंगाई का दंश
महंगाई का दंश
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
कभी भूल से भी तुम आ जाओ
कभी भूल से भी तुम आ जाओ
Chunnu Lal Gupta
Life
Life
C.K. Soni
खप-खप मरता आमजन
खप-खप मरता आमजन
विनोद सिल्ला
"मन"
Dr. Kishan tandon kranti
दिल का खेल
दिल का खेल
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
आंखे, बाते, जुल्फे, मुस्कुराहटे एक साथ में ही वार कर रही हो।
आंखे, बाते, जुल्फे, मुस्कुराहटे एक साथ में ही वार कर रही हो।
Vishal babu (vishu)
सुलगते एहसास
सुलगते एहसास
Surinder blackpen
वापस लौट नहीं आना...
वापस लौट नहीं आना...
डॉ.सीमा अग्रवाल
वो एक ही शख्स दिल से उतरता नहीं
वो एक ही शख्स दिल से उतरता नहीं
श्याम सिंह बिष्ट
💐प्रेम कौतुक-453💐
💐प्रेम कौतुक-453💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मैं ऐसा नही चाहता
मैं ऐसा नही चाहता
Rohit yadav
*कृपा करें जगदीश 【कुंडलिया】*
*कृपा करें जगदीश 【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
युवा भारत को जानो
युवा भारत को जानो
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
दोहे
दोहे
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
2283.🌷खून बोलता है 🌷
2283.🌷खून बोलता है 🌷
Dr.Khedu Bharti
तरुण वह जो भाल पर लिख दे विजय।
तरुण वह जो भाल पर लिख दे विजय।
Pt. Brajesh Kumar Nayak
पहचान
पहचान
Seema gupta,Alwar
औरों की उम्मीदों में
औरों की उम्मीदों में
DEVSHREE PAREEK 'ARPITA'
Loading...